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Bihar Board Subject Hindi 10th Chapter 6

Free { काव्यखंड } Bihar Board Subject Hindi 10th Chapter 6 : जनगंत्र का जन्म

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Bihar Board Subject Hindi 10th Chapter 6 : बिहार बोर्ड कक्षा 10 विषय हिंदी गोधूलि भाग 2 के काव्य खंड पाठ 6. ‘जनगंत्र का जन्म’ जिसकी रचना ‘रामधारी सिंह दिनकर’ के द्वारा किया गया | आप इस आर्टिकल में इस कबिता का अर्थ और कविता के साथ महत्पूर्ण सवालों के जवाब को जानेगें जो प्रतियोगिता परीक्षाओ में पूछे जातें है इस लिए इस आर्टिकल को अंत तक जरुर पढ़ें

‘जनगंत्र का जन्म’ रामधारी सिंह दिनकर की एक प्रेरणादायक कविता है, जो स्वतंत्रता संग्राम और लोकतंत्र की स्थापना का वर्णन करती है। इसमें कवि ने अंग्रेजों के खिलाफ भारतीयों के संघर्ष और बलिदान की बात की है। उन्होंने लोकतंत्र की जीत को एक नए युग का आगमन बताया है, जहाँ जनता की शक्ति सर्वोपरि है। कविता में संघर्ष, बलिदान, और स्वतंत्रता के महत्त्व को प्रभावशाली तरीके से चित्रित किया गया है।

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Bihar Board Subject Hindi 10th Chapter 6

Board NameBihar School Examination Board
Class10th
SubjectHindi ( गोधूलि भाग-2 )
Chapterस्वदेशी
Writerबदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’
Sectionकाव्य खंड
LanguageHindi
Exam2025
Last UpdateLast Weeks
Marks100

जनगंत्र का जन्म ( राम धारी सिंह दिनकर )

रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित “जनगणत्र का जन्म” कविता स्वतंत्रता संग्राम के समय लिखी गई एक प्रबल राष्ट्रवादी कविता है। इसमें कवि ने भारतीय जनमानस में जाग्रत हो रही स्वतंत्रता की चेतना, संघर्ष, और बलिदान की भावना का सजीव चित्रण किया है।

विस्तार से व्याख्या:

कविता का सारांश:
“जनगणत्र का जन्म” कविता में दिनकर जी ने जनतंत्र की उत्पत्ति का वर्णन किया है, जो अत्याचार, अन्याय और असमानता के खिलाफ एक विद्रोह के रूप में उत्पन्न होता है। कविता में बताया गया है कि जब शासक वर्ग जनता के अधिकारों को कुचलता है, तो जनता में विद्रोह की भावना उत्पन्न होती है और वे अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करते हैं। यह संघर्ष ही जनगणत्र का जन्म होता है।

जनता की शक्ति:
कवि ने इस कविता में जनता की शक्ति को सर्वोपरि माना है। उनका कहना है कि जब जनता संगठित होती है, तो कोई भी सत्ता या शासन उसे रोक नहीं सकता। कविता में स्वतंत्रता और स्वाभिमान की भावना को प्रमुखता दी गई है और बताया गया है कि जनगणत्र का जन्म तभी होता है जब लोग अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होते हैं और उन्हें हासिल करने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं।

शोषण और विद्रोह:
दिनकर जी ने कविता में शोषण का वर्णन किया है, जिसमें बताया गया है कि जब किसी राष्ट्र की जनता पर शोषण की सीमाएँ पार हो जाती हैं, तो वे विद्रोह का रास्ता अपनाते हैं। यह विद्रोह अत्याचारियों के खिलाफ होता है और इसके परिणामस्वरूप जनगणत्र का जन्म होता है।

क्रांति का आह्वान:
कविता में क्रांति का आह्वान किया गया है। कवि का मानना है कि क्रांति ही वह शक्ति है जो जनतंत्र को जन्म देती है। यह क्रांति समाज में फैले हुए असमानता, शोषण और अन्याय के खिलाफ होती है और इसके माध्यम से ही सच्चे जनतंत्र का निर्माण होता है।

विशेषताएँ:

  1. राष्ट्रवादी भावना: कविता में गहरी राष्ट्रवादी भावना का चित्रण किया गया है। यह कविता उस समय की है जब भारत स्वतंत्रता संग्राम की राह पर था, और इस कविता ने स्वतंत्रता सेनानियों को प्रेरणा दी थी।
  2. सशक्त भाषा: दिनकर जी की भाषा में ओज, शक्ति और दृढ़ता है। उनकी कविताएँ संघर्ष और विद्रोह की भावना को व्यक्त करती हैं और पाठकों को प्रेरित करती हैं।
  3. सामाजिक चेतना: कविता समाज में फैले हुए अन्याय और असमानता के खिलाफ आवाज उठाने की प्रेरणा देती है। इसमें जनतंत्र की स्थापना के लिए संघर्ष की आवश्यकता पर बल दिया गया है।

निष्कर्ष:

रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की “जनगणत्र का जन्म” कविता भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरणादायक कविताओं में से एक है। इसमें जनतंत्र के जन्म की प्रक्रिया को अत्यंत सजीव और प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया गया है, जो आज भी प्रासंगिक है। इस कविता में कवि ने जनशक्ति की महत्ता को प्रमुखता दी है और यह संदेश दिया है कि जनतंत्र का वास्तविक स्वरूप तभी प्रकट होता है जब जनता अपने अधिकारों के लिए संगठित होकर संघर्ष करती है।

जनगंत्र का जन्म से संबंधित महत्पूर्ण प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1: कवि की दृष्टि में समय के रथ को धर्म नाद क्या है? स्पष्ट करें।

उत्तर:
कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत के नव-निर्माण का आह्वान करते हुए समय के रथ को धर्म नाद के रूप में प्रस्तुत करते हैं। उनका मानना है कि अब समय आ गया है जब भारत की जनता अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक हो रही है। आज का धर्म नाद वह हुंकार है, जो जनता के हृदय से निकल रहा है और जो इस बात का प्रतीक है कि भारत का स्वरूप बदल रहा है। अब राजा नहीं, बल्कि जनता ही सिंहासन पर बैठ रही है। यह समय का धर्म नाद ही है, जो प्रजा को उसकी शक्ति और महत्ता का बोध कराता है और राजाओं के मुकुटों को हटाकर जनता के सिर पर अधिकार की माला पहनाता है।

प्रश्न 2: कविता के आरंभ में कवि भारतीय जनता का वर्णन किस रूप में करता है?

उत्तर:
कविता के आरंभ में कवि भारतीय जनता को उन तमाम वेदनाओं और कष्टों से गुजरते हुए दिखाते हैं, जिन्हें उन्होंने पराधीनता के समय सहा। जनता को वर्षों तक पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ा गया, उनकी आवाज़ दबाई गई, और उनके अधिकारों का हनन हुआ। लेकिन अब वही जनता जाग्रत हो चुकी है, वह जयघोष कर रही है और सिंहासन खाली करने की मांग कर रही है। कवि ने जनता को सिंह की गर्जना करने वाली, अपनी वेदनाओं को व्यक्त करने वाली, और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाली शक्तिशाली शक्ति के रूप में प्रस्तुत किया है।

प्रश्न 3: कवि के अनुसार किन लोगों की दृष्टि में जनता फूल या दुधमुंही बच्ची की तरह है और क्यों? कवि क्या कहकर उनका प्रतिवाद करता है?

उत्तर:
कवि के अनुसार, राजनेताओं और शासकों की दृष्टि में जनता फूल या दुधमुंही बच्ची की तरह है। वे जनता को मात्र एक निष्क्रिय और निरीह प्राणी मानते हैं, जिसे थोड़े से प्रलोभनों या वादों से शांत किया जा सकता है, जैसे एक रोती हुई बच्ची को खिलौनों से बहलाया जाता है। लेकिन कवि इस विचार का प्रतिवाद करते हुए कहते हैं कि जब जनता क्रोध में आती है, तो उसकी शक्ति असीमित होती है। जनता के गुस्से से धरती भी कांप उठती है, और वह सिंहासन पर बैठे शासकों को हटा सकती है। जनता ही असली शक्ति है, और वह किसी भी शासन को पलट सकती है।

प्रश्न 4: कवि जनता के स्वप्न की किस तरह चित्र खींचता है?

उत्तर:
कवि जनता के स्वप्न को एक अजेय और शक्तिशाली रूप में चित्रित करते हैं। जनता का यह स्वप्न सदियों की पराधीनता, अंधकार और शोषण के बावजूद जीवित रहा है। आज जनता निर्भय होकर अपने सपनों को साकार कर रही है और एक नये युग का आरंभ कर रही है। कवि का मानना है कि जनता का यह स्वप्न केवल स्वतंत्रता प्राप्ति का नहीं है, बल्कि एक ऐसे जनतंत्र की स्थापना का है, जहां उनकी आवाज़ सुनी जाए और उनके अधिकारों की रक्षा हो। अब अंधकार युग का अंत हो चुका है और जनता के सपनों का साकार होना ही विराट जनतंत्र का उदय है।

प्रश्न 5: विराट जनतंत्र का स्वरूप क्या है? कवि किनके सिर पर मुकुट धरने की बात करता है और क्यों?

उत्तर:
कवि के अनुसार, विराट जनतंत्र का स्वरूप वह है, जिसमें जनता की सर्वोच्चता होती है। यहां पर कोई राजशाही नहीं होती, बल्कि जनता ही अपने प्रतिनिधि चुनकर उन्हें सिंहासन पर बिठाती है। कवि जनता के सिर पर मुकुट धरने की बात करते हैं, जिसका अर्थ है कि असली शक्ति जनता के हाथ में होनी चाहिए। राजनेताओं की मनमानी और तानाशाही को समाप्त कर, जनता ही अपने भविष्य का निर्णय करती है। यह जनतंत्र का वास्तविक रूप है, जहां जनता के अधिकारों और उनकी इच्छा का सम्मान किया जाता है।

प्रश्न 6: कवि की दृष्टि में आज के देवता कौन हैं और वे कहाँ मिलेंगे?

उत्तर:
कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की दृष्टि में आज के देवता किसान और मजदूर हैं। वे वे लोग हैं जो कठोर परिश्रम करते हैं, खेतों में अनाज उगाते हैं, और पत्थर तोड़ते हैं। ये वही लोग हैं जो राष्ट्र की आत्मा हैं, और जिनके श्रम से देश का विकास होता है। ये देवता गाँवों में, खेतों में, खलिहानों में, और निर्माण स्थलों पर मिलेंगे। कवि का मानना है कि सच्चे देवता वही हैं, जो अपने श्रम से राष्ट्र की नींव को मजबूत करते हैं और जिनकी मेहनत से जनतंत्र की वास्तविक तस्वीर बनती है।

प्रश्न 7: कविता का मूल भाव क्या है? संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित “जनतंत्र का जन्म” कविता का मूल भाव स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में जनतंत्र के उदय का सजीव चित्रण है। कविता में कवि ने पराधीनता के दौरान भारतीय जनता की दयनीय स्थिति और स्वतंत्रता के बाद जनता की शक्ति, संघर्ष, और जागृति का वर्णन किया है। सदियों से शोषण और अत्याचार सहने वाली जनता अब जाग उठी है और अपने अधिकारों के लिए हुंकार भर रही है। जनता ने अब राजाओं को सिंहासन से हटाकर खुद को सर्वोच्च बना लिया है। कविता में यह दर्शाया गया है कि अब जनता ही राष्ट्र की असली शक्ति है, और जनतंत्र का बागडोर उसी के हाथ में है। खेतों और खलिहानों में मेहनत करने वाले लोग अब अपने श्रम से राष्ट्र का निर्माण कर रहे हैं, और जनता का साहस और शक्ति ही नए भारत का निर्माण कर रही है।

प्रश्न 8: व्याख्या करें

(क) सदियों की ठंडी-बुझी राख सुगबुगा उठीं, मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है।

उत्तर:
यह पंक्तियाँ “जनतंत्र का जन्म” कविता से ली गई हैं, जहाँ कवि स्वाधीनता प्राप्ति के बाद भारतीय जनमानस में उत्पन्न जागरूकता और शक्ति को व्यक्त कर रहे हैं। सदियों से दबे हुए और शोषित जनता अब अपने अधिकारों के प्रति सजग हो गई है। वह राख जो सदियों से ठंडी और बुझी हुई थी, अब सुलगने लगी है और अपने भीतर छिपी हुई आग को प्रकट कर रही है। जनता, जो पहले मिट्टी की तरह रौंदी जाती थी, अब सोने का ताज पहन कर गर्वित हो रही है और अपने अधिकारों के प्रति सजग है। यह ताज स्वतंत्रता का प्रतीक है, जो अब जनता के सिर पर सुशोभित हो रहा है।

(ख) हुँकारों से महलों की नींव उखड़ जाती, साँसों के बल से ताप हवा में उड़ता है, जनता की रोके राह, समय में ताव कहाँ, वह जिधर चाहती काल उधर ही मुड़ता है।

उत्तर:
इन पंक्तियों में कवि ने जनता की शक्ति और उसकी हुंकार का वर्णन किया है। कवि कहते हैं कि जनता की हुंकार इतनी प्रबल होती है कि महलों की नींव तक हिल जाती है। जनता की साँसों से उठने वाला ताप हवा में उछलने लगता है, जिससे वातावरण में बदलाव आ जाता है। समय में इतनी शक्ति नहीं कि वह जनता की राह को रोक सके। जनता जिस दिशा में चाहती है, समय भी उसी दिशा में मुड़ जाता है। यहाँ कवि यह कहना चाहते हैं कि जनता की शक्ति और इच्छाशक्ति ही राष्ट्र के भविष्य का निर्माण करती है। जनतंत्र में जनता ही सर्वोपरि होती है, और उसकी इच्छा से ही राजसत्ता का संचालन होता है।

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