Bihar Board Subject Hindi 10th Chapter 12 :बिहार बोर्ड कक्षा 10 विषय हिंदी गोधूलि भाग 2 पाठ 12. ‘मेरे बिना तुम प्रभु’ पाठ जिसके लेखक ‘रेनर मरिया रिल्के’ के द्वारा लिखा गया हैं | आप इस आर्टिकल में इस कविता का अर्थ और महत्पूर्ण सवालों के बारें में जानेगें जो आपको आपके परीक्षा में कभी मदद करने वाली हैं | 100 निश्चित सफलता पाने के लिए इन सभी पाठ को जरुर पढ़ें और याद करें |
‘मेरे बिना तुम प्रभु’ रेनर मरिया रिल्के द्वारा लिखी गई एक कविता है, जो बिहार बोर्ड कक्षा 10 हिंदी के गोधूलि भाग 2 के पाठ 12 में शामिल है। इस कविता में कवि ईश्वर से संवाद करता है और यह विचार प्रस्तुत करता है कि उसकी (कवि की) उपस्थिति के बिना ईश्वर का अस्तित्व अधूरा है। कवि मानता है कि मानव और ईश्वर के बीच एक गहरा संबंध है, और इंसान के बिना ईश्वर की सृष्टि पूर्ण नहीं हो सकती। यह कविता मानवता और दिव्यता के बीच के संबंध को दर्शाती है, और रिल्के की रचनाओं की गहराई और दार्शनिकता को प्रकट करती है।
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Bihar Board Subject Hindi 10th Chapter 11
Board Name | Bihar School Examination Board |
Class | 10th |
Subject | Hindi ( गोधूलि भाग-2 ) |
Chapter | मेरे बिना तुम प्रभु |
Writer | रेनर मरिया रिल्के |
Section | काव्य खंड |
Language | Hindi |
Exam | 2025 |
Last Update | Last Weeks |
Marks | 100 |
मेरे बिना तुम प्रभु – रेनर मारिया रिल्के
‘मेरे बिना तुम प्रभु’ बिहार बोर्ड कक्षा 10 हिंदी के गोधूलि भाग 2 के पाठ 12 में शामिल एक कविता है, जिसे प्रसिद्ध जर्मन कवि रेनर मरिया रिल्के द्वारा लिखा गया है। रिल्के का जन्म 4 दिसंबर 1875 को प्राग, चेकोस्लोवाकिया में हुआ था और वह बीसवीं सदी के महान कवियों में से एक माने जाते हैं। उनकी कविताओं में गहराई, भावनात्मकता और अस्तित्ववाद के तत्व स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं।
पाठ का सारांश:
यह कविता एक संवाद की तरह प्रतीत होती है, जिसमें कवि ईश्वर से बात करता है। कविता में, कवि ईश्वर से कहता है कि उसकी (कवि की) उपस्थिति के बिना भी प्रभु (ईश्वर) का अस्तित्व अधूरा है। यह विचार कुछ हद तक परंपरागत धार्मिक धारणाओं को चुनौती देता है, जहाँ ईश्वर को पूर्ण और स्वतंत्र माना जाता है।
कवि इस बात पर जोर देता है कि वह भी ईश्वर की सृष्टि का एक हिस्सा है, और उसकी (कवि की) उपस्थिति और अस्तित्व भी ईश्वर के अस्तित्व के लिए आवश्यक है। वह यह भी कहता है कि ईश्वर की दुनिया तब तक पूरी नहीं हो सकती जब तक कि कवि जैसी आत्मा उसमें नहीं होती, जो ईश्वर की सृष्टि को समझने और उसकी महानता को पहचानने में सक्षम हो।
कविता एक अद्वितीय दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है, जिसमें इंसान और ईश्वर के बीच के संबंध को गहरे और व्यक्तिगत स्तर पर चित्रित किया गया है। यह विचार कि ईश्वर की सृष्टि और मानवता के बीच एक गहरा संबंध है, कविता को विशेष बनाता है।
लेखक के बारे में:
रेनर मरिया रिल्के एक ऐसे कवि थे जिनकी कविताओं में प्रेम, मृत्यु, अस्तित्व और ईश्वर के प्रति गहरा चिंतन देखने को मिलता है। उनकी रचनाओं में एक तरह की आध्यात्मिकता और दार्शनिकता का मेल है, जो पाठकों को सोचने पर मजबूर करती है। ‘मेरे बिना तुम प्रभु’ जैसी कविताएँ उनके लेखन की गहराई और उनके अद्वितीय दृष्टिकोण को स्पष्ट रूप से दर्शाती हैं।
कुल मिलाकर, यह पाठ मानवता और दिव्यता के बीच के संबंध को एक नए दृष्टिकोण से समझने का प्रयास करता है, जो विद्यार्थियों के लिए न केवल साहित्यिक बल्कि दार्शनिक रूप से भी महत्वपूर्ण है।
मेरे बिना तुम प्रभु से संबधित महत्पूर्ण सवाल
प्रश्न 4. कवि किसको कैसा सुख देता था?
उत्तर:
कवि अपने आपको भगवान का भक्त मानते हुए, भगवान को सुख देने का उल्लेख करता है। कवि का मानना है कि भक्त ही भगवान का असली सहारा और उनकी कृपा का पात्र होता है। जब भगवान की कृपा दृष्टि भक्त के ऊपर पड़ती है, तो उसे शांति और आनंद की अनुभूति होती है। इसी तरह, जब भगवान की कृपा कवि पर होती है, तो भगवान को भी सुख मिलता है।
कवि ने इस सुखद अनुभव को इस प्रकार व्यक्त किया है कि भगवान के लिए वह एक ऐसी शय्या की तरह है, जिस पर भगवान विश्राम करते हैं। कवि के नरम कपोलों पर भगवान की कृपा दृष्टि विश्राम करती है, और इस कृपा के प्रभाव से भगवान को आनंद मिलता है। इस प्रकार, भक्त की प्रेममयी सेवा और समर्पण भगवान के लिए अत्यधिक सुखदायी होती है।
कवि इस बात को स्पष्ट करता है कि भक्त और भगवान का संबंध एक-दूसरे को सुख देने वाला होता है। भक्त भगवान के लिए समर्पित होता है, और भगवान की कृपा से ही भक्त को सुख और शांति प्राप्त होती है। इस प्रकार, भक्त की प्रेम और भक्ति भगवान के लिए सुख का स्रोत बनती है।
प्रश्न 5: कवि को किस बात की आशंका है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि को इस बात की आशंका है कि यदि वह (भक्त) नहीं रहेगा, तो भगवान का अस्तित्व और उनकी पहचान खो जाएगी। कवि मानता है कि भक्त ही भगवान की असली पहचान और उनके अस्तित्व का आधार है। यदि भक्त न हो, तो भगवान की महिमा और उनकी पूजा-अर्चना करने वाला कोई नहीं रहेगा। इस प्रकार, भगवान के स्वरूप को जीवित रखने और उनकी महिमा को बनाए रखने के लिए भक्त का होना आवश्यक है। कवि को डर है कि भक्त के बिना भगवान भी निरुपाय और बिना अस्तित्व के हो जाएंगे।
प्रश्न 6: कविता किसके द्वारा किसे संबोधित है? आप क्या सोचते हैं?
उत्तर:
कविता में कवि (भक्त) भगवान को संबोधित करता है। कवि भगवान से कहता है कि वह (भक्त) भगवान का आश्रय है, उनकी पहचान है। कवि का कहना है कि भगवान का अस्तित्व भक्त के बिना अधूरा है। भक्त के माध्यम से ही भगवान की पहचान होती है। इस विचार से सहमत होते हुए, यह माना जा सकता है कि भक्त और भगवान का संबंध अत्यंत घनिष्ठ है, जहाँ भक्त भगवान के अस्तित्व का आधार है।
प्रश्न 7: मनुष्य के नश्वर जीवन की महिमा और गौरव का यह कविता कैसे बखान करती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस कविता में कहा गया है कि मनुष्य का नश्वर जीवन, भले ही अस्थायी हो, लेकिन उसमें भगवान का अंश निहित होता है। मनुष्य के रूप में ही भगवान की पहचान होती है। कवि ने मनुष्य को भगवान का जलपात्र, मदिरा, वेश और वृत्ति कहकर उसके जीवन की महत्ता को उजागर किया है। यह कविता बताती है कि मानव जीवन, भगवान के अस्तित्व का वाहक है, और मनुष्य के बिना भगवान की महिमा अधूरी है।
प्रश्न 8: कविता के आधार पर भक्त और भगवान के बीच के संबंध पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
कविता में यह स्पष्ट किया गया है कि भक्त और भगवान के बीच का संबंध अन्योन्याश्रित है। भक्त भगवान का आधार है, और भगवान की महिमा भक्त के माध्यम से ही प्रकट होती है। बिना भक्त के, भगवान का अस्तित्व अधूरा और निरुपाय हो जाता है। भक्त भगवान के स्वरूप को साकार करता है, और भगवान की कृपा से भक्त परमानंद को प्राप्त करता है। इस प्रकार, भक्त और भगवान का संबंध एक-दूसरे पर पूरी तरह निर्भर है।
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