Bihar Board Subject Hindi 10th Chapter 1 : बिहार बोर्ड कक्षा 10 के हिंदी विषय के काव्य खंड के पाठ 1. “राम बिनु बिरथे जगि जनमा, जो नर दुःख में दुख नहिं मानें” जो की कभी कवि “गुरु नानक” के द्वारा लिखा गया है आप इस आर्टिकल में सभी सवालों और इन कविता का अर्थ जानेगें | जितने भी सवाल इस आर्टिकल में जानेगें वह आपके लिए बहुत ही महत्पूर्ण होने वाला है इस लिए इस आर्टिकल को अंत तक जरुर पढ़ें
“राम बिनु बिरथे जगि जनमा, जो नर दुःख में दुख नहिं मानें” गुरु नानक जी के इस काव्यांश में जीवन का सार समझाया गया है। उनका कहना है कि बिना ईश्वर (राम) की भक्ति के जीवन व्यर्थ है। जो व्यक्ति दुःखों को समझ नहीं पाता, उसका जीवन भी बेकार हो जाता है। गुरु नानक जी ने भक्ति, सत्कर्म, और दुःखों की सही पहचान को जीवन का असली उद्देश्य बताया है। Bihar board subject hindi 10th Chapter 1
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Bihar Board Subject Hindi 10th Chapter 1
Board Name | Bihar School Examination Board |
Class | 10th |
Subject | Hindi ( गोधूलि भाग-2 ) |
Chapter | राम बिनु बिरथे जगि जनमा, जो नर दुःख में दुख नहिं मानें |
Writer | गुरु नानक |
Section | काव्य खंड |
Language | Hindi |
Exam | 2025 |
Last Update | Last Weeks |
Marks | 100 |
राम बिनु बिरथे जगि जनमा, जो नर दुःख में दुख नहिं मानें
“राम बिनु बिरथे जगि जनमा, जो नर दुःख में दुख नहिं मानें” गुरु नानक जी के द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण काव्यांश है, जो जीवन के गहरे सत्य और आध्यात्मिकता को सरल और गूढ़ भाषा में व्यक्त करता है। यह पंक्तियाँ उस व्यक्ति के जीवन की व्यर्थता को दर्शाती हैं जिसने ईश्वर के प्रति प्रेम और आस्था का अनुभव नहीं किया है और जीवन के दुखों को नहीं समझा है।
काव्य का भावार्थ:
- “राम बिनु बिरथे जगि जनमा”: इस पंक्ति में ‘राम’ का अर्थ केवल भगवान राम से नहीं, बल्कि उस परम सत्ता से है जिसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है। यहाँ पर गुरु नानक जी यह कहते हैं कि उस परमात्मा के बिना, जो व्यक्ति इस संसार में जन्म लेता है, उसका जीवन व्यर्थ है। क्योंकि बिना ईश्वर की भक्ति या सत्कर्म के जीवन का कोई असली उद्देश्य नहीं होता।
- “जो नर दुःख में दुख नहिं मानें”: इस पंक्ति का अर्थ यह है कि वह व्यक्ति, जो संसार के दुःखों को दुःख नहीं मानता या जो इन दुःखों को समझ नहीं पाता, उसका जीवन व्यर्थ हो जाता है। दुखों के सही अर्थ को समझना और उनसे सीख लेना ही जीवन का सार है।
काव्य का संदेश:
- इस काव्यांश के माध्यम से गुरु नानक जी जीवन के वास्तविक उद्देश्य और धार्मिकता की महत्ता पर जोर देते हैं। उनका कहना है कि जीवन का सही उद्देश्य परमात्मा की भक्ति करना और दुःख-सुख की वास्तविकता को समझना है। उन्होंने यह भी बताया कि जो व्यक्ति जीवन में आए दुःखों को सही तरीके से नहीं समझता, वह जीवन की सच्ची अनुभूति से वंचित रह जाता है।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण:
- गुरु नानक जी के अनुसार, जीवन का उद्देश्य ईश्वर की भक्ति, सत्कर्म और मानवता की सेवा करना है। जब व्यक्ति दुःख को समझता है और उसे सहन करता है, तो वह जीवन की सच्चाई को जान पाता है और उसके जीवन का सार पूर्ण हो जाता है।
यह काव्यांश हमें अपने जीवन के उद्देश्य पर विचार करने के लिए प्रेरित करता है और सिखाता है कि बिना ईश्वर की भक्ति के जीवन अधूरा और व्यर्थ है।
महत्पूर्ण प्रश्न उत्तर
कविता के साथ
प्रश्न 1: कवि किसके बिना जगत् में यह जन्म व्यर्थ मानता है?
उत्तर:
कवि गुरु नानक जी के अनुसार, राम-नाम के बिना यह जन्म व्यर्थ है। उनका कहना है कि जब व्यक्ति राम-नाम की भक्ति से रहित होता है, तो उसका जीवन केवल विष का भोग बन जाता है। राम-नाम की अनुपस्थिति में जीवन का कोई सार या मूल्य नहीं होता, और यह जन्म केवल व्यर्थ का अनुभव होता है।
प्रश्न 2: वाणी कब विष के समान हो जाती है?
उत्तर:
वाणी तब विष के समान हो जाती है जब वह बाहरी आडंबरों और दिखावे से भरी होती है, और राम-नाम को छोड़ देती है। यदि वाणी केवल कृत्यों और शाब्दिक आडंबर से परिपूर्ण हो, और उसमें राम-नाम की भक्ति या समर्पण की भावना न हो, तो वह विषकारी हो जाती है। राम-नाम के बिना, वाणी काम-क्रोध, मद सेवन जैसे नकारात्मक भावनाओं से भरी रहती है, जिससे उसकी शुद्धता और मूल्यता खो जाती है।
प्रश्न 3: नाम-कीर्तन के आगे कवि किन कर्मों की व्यर्थता सिद्ध करता है?
उत्तर:
कवि गुरु नानक जी के अनुसार, नाम-कीर्तन के सामने कई अन्य धार्मिक कर्म व्यर्थ हैं। इनमें शामिल हैं:
- पुस्तक पाठ: ग्रंथों का अध्ययन और पाठ।
- व्याकरण ज्ञान: भाषाशास्त्र और व्याकरण का अध्ययन।
- दंड कमण्डल धारण: साधु या संत की पहचान के प्रतीक के रूप में दंड और कमण्डल रखना।
- तीर्थ यात्रा: तीर्थ स्थलों पर जाकर पूजा-अर्चना करना।
- जटा बढ़ाना: सिर पर जटा (जटाजूट) रखना।
- तन में भस्म लगाना: शरीर पर भस्म लगाकर साधु वेश अपनाना।
- वस्त्रहीन होना: नग्न अवस्था में घूमना।
कवि का कहना है कि ये सभी कर्म, चाहे वे कितने भी पवित्र क्यों न प्रतीत हों, राम-कीर्तन के मुकाबले में निष्फल हैं। केवल राम-नाम की भक्ति और कीर्तन ही वास्तविक धर्म और उद्धार का मार्ग है।
प्रश्न 4: प्रथम पद के आधार पर बताएं कि कवि ने अपने युग में धर्म-साधना के कैसे-कैसे रूप देखे थे?
उत्तर:
प्रथम पद के आधार पर, कवि गुरु नानक जी ने अपने युग में धर्म-साधना के कई रूपों का वर्णन किया है:
- सिखा बढ़ाना: धार्मिक शिक्षा और शिक्षण।
- ग्रंथों का पाठ: धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन।
- व्याकरण वाचन: भाषा और व्याकरण का ज्ञान।
- भस्म लगाना: शरीर पर भस्म लगाकर साधु का जीवन जीना।
- तीर्थ यात्रा: धार्मिक स्थलों की यात्रा और पूजा।
- दंड कमण्डल धारण: धार्मिक प्रतीक धारण करना।
- नग्न अवस्था में घूमना: वस्त्रहीन होकर साधु वेश में रहना।
इन सभी धर्म-साधना के रूपों के बावजूद, कवि ने यह स्पष्ट किया कि राम-कीर्तन और राम-नाम की भक्ति के सामने ये सभी कर्म व्यर्थ हैं। केवल राम-नाम की सच्ची भक्ति ही जीवन को अर्थपूर्ण और सफल बनाती है।
प्रश्न 5: हरिरस से कवि का अभिप्राय क्या है?
उत्तर:
कवि का अभिप्राय “हरिरस” से भगवान के नाम की महिमा और उसकी भक्ति से प्राप्त आत्मिक सुख और परमानंद से है। हरिरस का तात्पर्य है भगवान के नाम कीर्तन से मिलने वाला अमृतमय आनंद। भगवान का नाम स्मरण और कीर्तन में डूबना ही हरिरस है। यह रस, परम आनंद और आंतरिक सुख को व्यक्त करता है, जो भगवान के नाम की भक्ति और कीर्तन से प्राप्त होता है।
प्रश्न 6: कवि की दृष्टि में ब्रह्म का निवास कहाँ है?
उत्तर:
कवि की दृष्टि में ब्रह्म का निवास उन प्राणियों में है जो सांसारिक विषयों की आसक्ति से मुक्त हैं और मान-अपमान, हर्ष-शोक से परे हैं। वे व्यक्ति जिनमें काम, क्रोध, लोभ, और मोह नहीं है, वे ब्रह्म के साक्षात्कार के योग्य होते हैं। ब्रह्म उन व्यक्तियों में निवास करता है जो पूरी तरह से इन बुराईयों से रहित हैं।
प्रश्न 7: गुरु की कृष्ण से किस युक्ति की पहचान हो पाती है?
उत्तर:
गुरु की कृपा से ही ब्रह्म को प्राप्त करने की युक्ति की पहचान हो पाती है। कवि का कहना है कि ब्रह्म के साक्षात्कार के लिए लोभ, मोह, ईर्ष्या, द्वेष, और निंदा से दूर रहना आवश्यक है। सांसारिक विषयों की आसक्ति और इन बुराईयों से रहित रहकर ही ब्रह्म को प्राप्त किया जा सकता है। गुरु की कृपा से ही ब्रह्म प्राप्ति की सही युक्ति का ज्ञान मिलता है, और बिना गुरु के ब्रह्म को पाने की युक्ति समझना संभव नहीं है।
(क) राम नाम बिनु अरुझि मरै
व्याख्या:
गुरु नानक के अनुसार, राम-नाम के बिना जीवन व्यर्थ है। यहाँ राम-नाम की महत्ता पर जोर दिया गया है। वे मानते हैं कि सभी बाह्य धार्मिक क्रियाएँ—जैसे पूजा-पाठ, तीर्थाटन, या धार्मिक व्रत—यदि राम-नाम की वास्तविक उपासना के बिना की जाएँ, तो उनका कोई मूल्य नहीं है। व्यक्ति यदि राम-नाम की उपासना नहीं करता, तो वह सभी भक्ति कर्म व्यर्थ समझे जाते हैं। जीवन का वास्तविक अर्थ और मूल्य केवल राम-नाम के माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता है।
(ख) कंचन माटी जाने
व्याख्या:
इस पंक्ति में कवि गुरुनानक ने धन (कंचन) और उसकी अस्थिरता को तुच्छ माना है। वे कहते हैं कि सच्चे ब्रह्म के दर्शन और उपासना के लिए धन को मिट्टी के समान समझना चाहिए। धन और भौतिक वस्तुओं के प्रति मोह और आसक्ति छोड़कर ही व्यक्ति ब्रह्म की प्राप्ति कर सकता है। धन को केवल एक अस्थायी और मिट्टी जैसा मानकर ही व्यक्ति को वास्तविक दिव्य ज्ञान की ओर अग्रसर होना चाहिए।
(ग) हरष सोक तें रहै नियारो, नाहि मान अपमाना
व्याख्या:
कवि गुरुनानक के अनुसार, ब्रह्म को पाने के लिए व्यक्ति को सुख-दुख, हर्ष-शोक, मान-अपमान से परे रहना चाहिए। जो व्यक्ति इन भावनाओं से ऊपर उठ जाता है, वही ब्रह्म को प्राप्त कर सकता है। ब्रह्म के साक्षात्कार के लिए मानसिक स्थिति की आवश्यकताएँ हैं—आनंद और शोक से परे रहना, और सामाजिक मान-अपमान से मुक्त रहना। यह स्थिति व्यक्ति को ब्रह्म के निकट ले जाती है और ब्रह्म का निवास ऐसे व्यक्तियों में होता है।
(घ) नानक लीन भयो गोविंद सो, ज्यों पानी संग पानी
व्याख्या:
गुरु नानक ने यहाँ ब्रह्म के साक्षात्कार की स्थिति की तुलना पानी में पानी मिलाने से की है। जब व्यक्ति ब्रह्म के साथ एक हो जाता है, तब उसका अस्तित्व और ब्रह्म का अस्तित्व एक ही हो जाते हैं, जैसे पानी में पानी मिलकर एक हो जाता है। ब्रह्म के सानिध्य में जाकर व्यक्ति भी ब्रह्ममय हो जाता है, और जीवात्मा तथा परमात्मा का भेद मिट जाता है। इस मिलन के लिए गुरु की कृपा और मार्गदर्शन आवश्यक है।
प्रश्न 9. आधुनिक जीवन में उपासना के प्रचलित रूपों को देखते हुए नानक के इन पदों की क्या प्रासंगिकता है? अपने शब्दों में विचार करें।
उत्तर: आधुनिक जीवन में उपासना के विभिन्न स्वरूप देखे जा सकते हैं, जैसे तीर्थाटन, जटा-बढ़ाना, भस्म लगाना, या मंदिर-मस्जिद जाकर पूजा करना। इसके साथ ही धर्म के नाम पर बाहरी आडंबर और विभेद भी बढ़ गए हैं। लोग धार्मिक आयोजनों में बड़े खर्चे करते हैं, लेकिन फिर भी सच्ची शांति और सुख की खोज में भटकते रहते हैं।
गुरु नानक के पदों की प्रासंगिकता यहाँ अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। वे राम-नाम की महिमा पर जोर देते हैं और बताते हैं कि बाहरी आडंबर और कठिन उपासना की अपेक्षा राम-नाम की उपासना सरल और प्रभावी है। हरि-कीर्तन करने से बिना किसी भौतिक साधन के व्यक्ति को सच्चा आनंद और शांति मिल सकती है।
नानक के उपदेश आधुनिक जीवन में भी सच्ची उपासना की दिशा दिखाते हैं। वे बतलाते हैं कि सच्चे भक्ति मार्ग में बाहरी कर्मकांड की बजाय हृदय की सरलता और ईश्वर के नाम की महत्ता है। इस दृष्टिकोण को अपनाकर, आज भी हम जीवन में सच्चा सुख और ईश्वर का साक्षात्कार प्राप्त कर सकते हैं।
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