bihar board class 10th hindi chapter 9 : बिहार बोर्ड कक्षा 10 वीं के छात्र छात्रा के लिए अत्यंत ही उपयोगी हिंदी विषय के पाठ 9. अविन्यों जो की एक ललित निबंध है जिसे अशोक वाजपेयी के द्वारा लिखा गया हैं | इस आर्टिकल में आप पाठ के अनुसार सभी सवालों के जवाब और कुछ महत्पूर्ण बिंदु को जानेगे जिसकी मदद से आप बड़ी ही आसानी से परीक्षा के सफलता प्राप्त कर सकते हैं |
अविन्यों (ललित निबंध) – अशोक वाजपेयी
अविन्यों फ्रांस का एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध शहर है। अशोक वाजपेयी ने इस निबंध में अविन्यों की कला, संस्कृति, और इतिहास का वर्णन किया है। मध्ययुग में यह पोप का निवास स्थान रहा, जिससे यह धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बना। शहर की पुरानी इमारतें और स्मारक इसकी धरोहर को दर्शाते हैं। आधुनिक अविन्यों आज भी कला और सांस्कृतिक उत्सवों के लिए प्रसिद्ध है। लेखक ने अविन्यों के प्रति अपने गहरे प्रेम को खूबसूरत शब्दों में व्यक्त किया है।
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bihar board class 10th hindi chapter 9
Board Name | Bihar School Examination Board |
Class | 10th |
Subject | Hindi ( गोधूलि भाग-2 ) |
Chapter | 9. आविन्यों ( ललित रचना ) |
Writer | अशोक वाजपेयी |
Section | गद्यखंड |
Language | Hindi |
Exam | 2025 |
Last Update | Last Weeks |
Marks | 100 |
आविन्यों ( ललित रचना )
पाठ 9: अविन्यों (ललित निबंध) – अशोक वाजपेयी
अविन्यों (Avignon) एक प्रसिद्ध शहर है जो फ्रांस में स्थित है। यह निबंध अशोक वाजपेयी द्वारा लिखा गया है, जिसमें लेखक ने इस ऐतिहासिक शहर के सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, और साहित्यिक महत्व का वर्णन किया है।
निबंध का सारांश:
अविन्यों का इतिहास और संस्कृति फ्रांस के मध्ययुगीन युग से गहराई से जुड़ी हुई है। यह शहर अपनी सांस्कृतिक धरोहर, कला, और स्थापत्य के लिए जाना जाता है। मध्ययुग में, अविन्यों कुछ समय के लिए पोप का निवास स्थान भी रहा था, और उस समय यहां कई महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियां होती थीं।
लेखक ने निबंध में अविन्यों की कला और संस्कृति की समृद्धि की प्रशंसा की है। उन्होंने बताया है कि यह शहर कैसे कला के विविध रूपों, जैसे नाटक, संगीत, और चित्रकला के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र बना। अशोक वाजपेयी अविन्यों के न केवल भौगोलिक महत्व को रेखांकित करते हैं, बल्कि इसे एक ऐसी जगह के रूप में प्रस्तुत करते हैं जो कला और संस्कृति के प्रति समर्पण का प्रतीक है।
प्रमुख बिंदु:
- इतिहास और संस्कृति: अविन्यों का इतिहास यूरोप की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं से जुड़ा हुआ है। यह शहर पोप के निवास के रूप में प्रसिद्ध था और यहां कला और संस्कृति का उत्कर्ष हुआ।
- कला और साहित्य: लेखक ने अविन्यों को एक सांस्कृतिक केंद्र के रूप में दर्शाया है, जहां नाटक, संगीत, और साहित्य का विशेष महत्व रहा है। यह शहर सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए आज भी प्रसिद्ध है।
- स्थापत्य और धरोहर: अविन्यों की पुरानी इमारतें और स्मारक, जैसे कि पालेस ऑफ़ द पॉप्स (Palace of the Popes), इसके ऐतिहासिक महत्व को उजागर करते हैं।
- आधुनिक अविन्यों: लेखक ने अविन्यों को आधुनिक समय में भी कला और संस्कृति का केंद्र बताया है, जहां आज भी कई सांस्कृतिक उत्सव और कार्यक्रम आयोजित होते हैं।
निष्कर्ष:
अशोक वाजपेयी का यह निबंध अविन्यों के प्रति उनके गहरे प्रेम और सम्मान को दर्शाता है। उन्होंने इस शहर के विभिन्न पहलुओं को अपने शब्दों में खूबसूरती से पिरोया है, जिससे पाठकों को इसके सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व को समझने में मदद मिलती है।
आविन्यों ( ललित रचना ) से सम्बंधित महत्पूर्णप्रश्न उत्तर
प्रश्न 1: आविन्यों क्या है और वह कहाँ अवस्थित है?
उत्तर: आविन्यों दक्षिण फ्रांस में स्थित एक प्राचीन और ऐतिहासिक शहर है, जो रोन नदी के किनारे बसा हुआ है। यह शहर अपने सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है।
प्रश्न 2: बरस आविन्यों में कब और कैसा समारोह हुआ करता है?
उत्तर: हर साल गर्मियों में, आविन्यों में फ्रांस और यूरोप का एक अत्यन्त प्रसिद्ध और लोकप्रिय रंगमंच समारोह आयोजित किया जाता है। यह समारोह न केवल स्थानीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी कला प्रेमियों के बीच बेहद लोकप्रिय है।
प्रश्न 3: लेखक आविन्यों किस सिलसिले में गए थे? वहाँ उन्होंने क्या देखा-सुना?
उत्तर: लेखक अशोक वाजपेयी आविन्यों में पीटर ब्रुक के विवादास्पद नाटक ‘महाभारत’ के निमंत्रण पर गए थे, जिसे वहाँ पहली बार प्रस्तुत किया जाना था। उन्होंने देखा कि समारोह के दौरान शहर के कई चर्च और पुराने स्थान रंगमंच में परिवर्तित हो गए थे, जो शहर के सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाता है।
प्रश्न 4: ला शत्रूज क्या है और वह कहाँ अवस्थित है? आजकल उसका क्या उपयोग होता है?
उत्तर: ला शत्रूज फ्रेंच शासकों द्वारा निर्मित एक किला है, जो आविन्यों में स्थित है। इसे पोप की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए बनाया गया था। वर्तमान में, इस किले में एक कला केंद्र स्थापित किया गया है, जो रंगमंच और लेखन से संबंधित गतिविधियों के लिए उपयोग में लाया जाता है।
प्रश्न 5: ला शत्रूज का अंतरंग विवरण अपने शब्दों में प्रस्तुत करते हुए यह स्पष्ट कीजिए कि लेखक ने उसके स्थापत्य को ‘मौन का स्थापत्य’ क्यों कहा है?
उत्तर: ला शत्रूज एक काथूसियन सम्प्रदाय का ईसाई मठ है, जो फ्रेंच शासकों द्वारा निर्मित किले में स्थित है। इसके भीतरी भाग में ईसाई संतों के लिए छोटे-छोटे चैम्बर्स बने हुए हैं, जो चौदहवीं सदी के फर्नीचर से सुसज्जित हैं। इन चैम्बरों के मुख्य द्वार कब्रगाह के चारों ओर बने गलियारों में खुलते हैं। काथूसियन सम्प्रदाय मौन और शांति में विश्वास करता है, और यही मौन उसकी स्थापत्य कला में भी परिलक्षित होता है। इस कारण से लेखक ने इस स्थापत्य को ‘मौन का स्थापत्य’ कहा है।
प्रश्न 6: लेखक आविन्यों क्या साथ लेकर गए थे और वहाँ कितने दिनों तक रहे? लेखक की उपलब्धि क्या रही?
उत्तर: लेखक अशोक वाजपेयी आविन्यों अपने साथ एक हिन्दी टाइपराइटर, तीन-चार पुस्तकें, और कुछ संगीत के टेप्स लेकर गए थे। वे वहाँ 24 अक्टूबर से 10 नवम्बर, 1994 तक कुल उन्नीस दिनों तक रहे। इस दौरान उन्होंने पैंतीस कविताएँ और सत्ताईस गद्य की रचना की, जो उनकी सृजनशीलता की महत्वपूर्ण उपलब्धि थी।
प्रश्न 7: ‘प्रतीक्षा करते हैं पत्थर’ शीर्षक कविता में कवि क्यों और कैसे पत्थर का मानवीकरण करता है?
उत्तर: कवि अशोक वाजपेयी का निवास एकांतवास में, मौन का पालन करने वाले सम्प्रदाय के स्थान पर था, जिसका उन पर गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने अपने मौन और एकांत को पत्थरों से जोड़कर, उन्हें प्रतीक्षा करते हुए मानवीकृत रूप में चित्रित किया। यह मानवीकरण उनके अकेलेपन और मौन के अनुभव का प्रतीक है।
प्रश्न 8: आविन्यों के प्रति लेखक कैसे अपना सम्मान प्रदर्शित करते हैं?
उत्तर: लेखक ने आविन्यों की सुंदर, निविड़, सघन और सुनसान रातों और दिनों का अनुभव करते हुए इस स्थान के प्रति गहरा सम्मान व्यक्त किया है। उन्होंने यहाँ जो भी पाया, उसके लिए गहरी कृतज्ञता प्रकट की और आविन्यों में बिताए समय को स्मृति के रूप में संजोया, जिसे उन्होंने अपने लेखन में भी दर्शाया है।
प्रश्न 9: मनुष्य जीवन से पत्थर की क्या समानता और विषमता है?
उत्तर: मनुष्य और पत्थर दोनों समय के परिवर्तन का सामना करते हैं। जहां मनुष्य अपने अनुभवों और भावनाओं को प्रकट करता है, पत्थर मौन रहता है। मनुष्य अपनी प्राचीन गाथाओं को गाता है, जबकि पत्थर प्राचीनता को अपने भीतर सहेजता है। मनुष्य अपनी भावनाओं को व्यक्त करता है, परंतु पत्थर निःशब्द रहकर भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है। इस प्रकार, दोनों में समानता और विषमता दोनों पाई जाती हैं।
प्रश्न 10: इस कविता से आप क्या सीखते हैं?
उत्तर: इस कविता से यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने लक्ष्य के प्रति मौन रहकर और धैर्यपूर्वक कर्म करना चाहिए। जीवन में आने वाली कठिनाइयों और चुनौतियों को सहन करते हुए अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होना चाहिए।
प्रश्न 11: नदी के तट पर बैठे हुए लेखक को क्या अनुभव होता है?
उत्तर: नदी के तट पर बैठे हुए लेखक को ऐसा अनुभव होता है मानो जल स्थिर है और तट ही बह रहा है। उन्हें ऐसा महसूस होता है कि वे नदी के साथ बह रहे हैं, और धीरे-धीरे वे स्वयं को नदी के समान ही महसूस करने लगते हैं। यह अहसास उन्हें अपने अस्तित्व और प्रकृति के साथ गहरे जुड़ाव का प्रतीक लगता है।
प्रश्न 12: नदी तट पर लेखक को किसकी याद आती है और क्यों?
उत्तर: नदी तट पर बैठकर लेखक को विनोद कुमार शुक्ल की एक कविता याद आती है। इसका कारण यह है कि जब लेखक नदी के पास बैठे, तो उन्हें महसूस हुआ कि वे स्वयं नदी बन गए हैं। शुक्ल जी की कविता में भी “नदी-चेहरा लोगों” से मिलने जाने की बात कही गई है, जो लेखक के अनुभव से मेल खाती है। इसी प्रासंगिकता के कारण उन्हें शुक्ल की कविता की याद आती है।
प्रश्न 13: नदी और कविता में लेखक क्या समानता पाता है?
उत्तर: लेखक को नदी और कविता के बीच कई समानताएँ दिखती हैं। जैसे नदी सदियों से हमारे साथ है, वैसे ही कविता भी मानव जीवन की संगिनी रही है। नदी में विभिन्न स्रोतों से जल आकर मिलता है और वह सागर में समाहित होता रहता है। इसी तरह कविता में भी विभिन्न भावनाएँ, विचार, और जीवन की छवियाँ आकर मिलती हैं और शब्दों के माध्यम से व्यक्त होती हैं। जिस प्रकार नदी कभी जल-रिक्त नहीं होती, उसी प्रकार कविता भी कभी शब्द-रिक्त नहीं होती।
प्रश्न 14: किसके पास तटस्थ रह पाना संभव नहीं हो पाता और क्यों?
उत्तर: नदी और कविता के पास तटस्थ रह पाना संभव नहीं होता। नदी अपने पास आने वाले किसी भी व्यक्ति को अनदेखा नहीं करती; वह सबको अपने साथ बहा ले जाती है, उसे भिगो देती है। इसी प्रकार, कविता भी अनगिनत बिंब, शब्द भंगिमाएँ, जीवन छवियाँ, और अनुभवों को समाहित कर लेती है, जो पाठक को प्रभावित किए बिना नहीं छोड़ती। इस प्रभाव से बचना संभव नहीं होता, क्योंकि कविता और नदी दोनों अपनी गहराई और प्रवाह से मनुष्य को छूती हैं।
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