Bihar Board Class 10th Hindi Chapter 8 : बिहार बोर्ड कक्षा 10 विषय हिंदी गोधुली भाग 2 से लिया गया पाठ 8 जित-जित में निरखत हूँ जो की एक साक्षात्कार हैं जिसे पंडित बिरजू महाराज के द्वारा लिखा गया हैं | आप इस आर्टिकल में जित-जित में निरखत हूँ पाठ के सम्पूर्ण जानकारी का अभ्यास करेगें तथा महत्पूर्ण सवालों के जानेगें जो आपको आपके परीक्षाओं में कभी अधिक मदद करने वाली हैं तो इसे अंत तक अवश्य पढ़े और सभी पाठ और विषय के जानकारी के लिए महत्पूर्ण लिंक निचे दिया गया है |
पाठ 8 “जित-जित में निरखत हूँ” बिहार बोर्ड कक्षा 10 के हिंदी गोधूलि भाग 2 में शामिल है, और यह पंडित बिरजू महाराज का साक्षात्कार है। इसमें बिरजू महाराज ने अपने जीवन, नृत्य के प्रति उनके समर्पण, और कथक नृत्य की महत्ता पर प्रकाश डाला है। वे बताते हैं कि किस प्रकार कथक नृत्य ने उनकी जिंदगी को आकार दिया और भारतीय संस्कृति में इसकी अहमियत को उजागर किया। इस साक्षात्कार में, उन्होंने नृत्य को एक साधना के रूप में देखने की बात की और युवाओं को अपनी सांस्कृतिक धरोहर को बनाए रखने का संदेश दिया है।
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Bihar Board Class 10th Hindi Chapter 8
Board Name | Bihar School Examination Board |
Class | 10th |
Subject | Hindi ( गोधूलि भाग-2 ) |
Chapter | 8. जित-जित में निरखत हूँ ( साक्षात्कार ) |
Writer | पंडित बिरजू महाराज |
Section | गद्यखंड |
Language | Hindi |
Exam | 2025 |
Last Update | Last Weeks |
Marks | 100 |
जित-जित में निरखत हूँ ( साक्षात्कार )
“जित-जित में निरखत हूँ” बिहार बोर्ड कक्षा 10 की हिंदी पाठ्यपुस्तक “गोधुलि भाग 2” में शामिल एक साक्षात्कार है, जिसमें प्रसिद्ध कथक नर्तक पंडित बिरजू महाराज के विचार और जीवन की झलकियाँ प्रस्तुत की गई हैं। इस साक्षात्कार में पंडित बिरजू महाराज ने अपने जीवन, कला और कथक नृत्य के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला है।
मुख्य बिंदु:
- कथक नृत्य का महत्व: पंडित बिरजू महाराज कथक नृत्य को न सिर्फ एक कला के रूप में देखते हैं, बल्कि इसे जीवन जीने का एक तरीका मानते हैं। उनके अनुसार, कथक में भाव, संगीत, ताल और गति का अनोखा संगम होता है, जो इसे अन्य नृत्य शैलियों से अलग करता है।
- नृत्य की साधना: पंडित बिरजू महाराज ने बताया कि कथक नृत्य की साधना में समर्पण, अनुशासन और निरंतर अभ्यास की आवश्यकता होती है। यह सिर्फ शारीरिक क्रियाओं का संयोजन नहीं है, बल्कि इसमें मन और आत्मा का समर्पण भी शामिल होता है।
- गुरु-शिष्य परंपरा: उन्होंने गुरु-शिष्य परंपरा के महत्व पर भी जोर दिया। उनके अनुसार, एक सच्चा गुरु अपने शिष्य को न सिर्फ नृत्य की तकनीक सिखाता है, बल्कि उसे जीवन के आदर्शों और मूल्यों से भी परिचित कराता है।
- कला और संस्कृति का संरक्षण: पंडित बिरजू महाराज ने भारतीय कला और संस्कृति के संरक्षण पर भी बात की। उनका मानना है कि नई पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक धरोहर से जुड़ने और उसे आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करना आवश्यक है।
- संगीत और नृत्य का समन्वय: इस साक्षात्कार में उन्होंने संगीत और नृत्य के समन्वय की महत्ता को भी रेखांकित किया। उनके अनुसार, संगीत और नृत्य दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं और इनका संयोजन ही किसी भी प्रस्तुति को संपूर्ण बनाता है।
निष्कर्ष:
“जित-जित में निरखत हूँ” साक्षात्कार पंडित बिरजू महाराज के जीवन और उनकी कला के प्रति गहन समर्पण को दर्शाता है। यह पाठ विद्यार्थियों को न केवल कथक नृत्य की बारीकियों से अवगत कराता है, बल्कि भारतीय शास्त्रीय नृत्य और संस्कृति के प्रति प्रेम और आदर भी विकसित करता है।
जित-जित में निरखत हूँ से संबधित महत्पूर्ण सवाल
पाठ के साथ
प्रश्न 1. लखनऊ और रामपुर से बिरजू महाराज का क्या संबंध है?
उत्तर: लखनऊ और रामपुर, दोनों ही स्थान बिरजू महाराज के जीवन में विशेष महत्त्व रखते हैं। बिरजू महाराज का जन्म लखनऊ में हुआ था, जो कथक नृत्य की लखनऊ घराने की परंपरा का प्रमुख केंद्र है। उनके परिवार का कथक से गहरा संबंध था, और यह कला उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा थी। दूसरी ओर, रामपुर वह स्थान था जहाँ उनका परिवार कुछ समय के लिए रहा। उनके बहनों का जन्म भी रामपुर में हुआ था। बिरजू महाराज के शुरुआती दिनों में रामपुर का महत्त्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यहीं पर उनके परिवार ने जीवन के कई महत्वपूर्ण पल बिताए।
प्रश्न 2. रामपुर के नवाब की नौकरी छूटने पर हनुमान जी को प्रसाद क्यों चढ़ाया?
उत्तर: रामपुर के नवाब की नौकरी छूटने पर बिरजू महाराज के पिता ने हनुमान जी को प्रसाद चढ़ाया क्योंकि यह उनके लिए एक राहत का समय था। जब बिरजू महाराज मात्र छह साल के थे, तब वे नवाब साहब के दरबार में नृत्य करते थे, जो उनके पिता के लिए चिंता का कारण था। उनके पिता को लगता था कि यह नौकरी उनके परिवार के लिए सही नहीं थी, इसलिए जब नौकरी छूटी, तो उन्होंने इसे हनुमान जी की कृपा मानते हुए प्रसाद चढ़ाया, ताकि वे इस नौकरी के बंधन से मुक्त हो सकें।
प्रश्न 3. नृत्य की शिक्षा के लिए पहले-पहल बिरजू महाराज किस संस्था से जुड़े और वहाँ किनके संपर्क में आए?
उत्तर: नृत्य की शिक्षा प्राप्त करने के लिए बिरजू महाराज सबसे पहले दिल्ली में स्थित “हिन्दुस्तानी डान्स म्यूजिक” स्कूल से जुड़े। इस संस्था में उन्होंने नृत्य के कई महान हस्तियों के साथ संपर्क स्थापित किया, जिनमें कपिला जी और लीला कृपलानी जैसी प्रमुख कलाकार शामिल थीं। यहाँ पर उन्होंने अपनी नृत्यकला को और भी निखारने का अवसर प्राप्त किया, जो उनके भविष्य की आधारशिला बनी।
प्रश्न 4. किनके साथ नाचते हुए बिरजू महाराज को पहली बार प्रथम पुरस्कार मिला?
उत्तर: बिरजू महाराज को पहली बार प्रथम पुरस्कार कलकत्ता (कोलकाता) में मिला। इस मौके पर वे अपने चाचा शम्भू महाराज और अपने पिता के साथ नाचे थे। इस प्रदर्शन ने न केवल उन्हें पहला पुरस्कार दिलाया, बल्कि उनके नृत्यकला के प्रति लोगों की सोच को भी बदल दिया और उन्हें एक उभरते हुए नृत्य कलाकार के रूप में पहचान मिली।
प्रश्न 5. बिरजू महाराज के गुरु कौन थे? उनका संक्षिप्त परिचय दें।
उत्तर: बिरजू महाराज के गुरु उनके पिता, अच्छन महाराज, थे। अच्छन महाराज लखनऊ घराने के प्रमुख कथक नृत्यांगना थे, और उन्हें इस कला में महारत हासिल थी। वे बहुत ही सरल और संवेदनशील व्यक्ति थे, जो अपने दुःख को कभी जाहिर नहीं करते थे। उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य नृत्यकला को ऊँचाइयों पर पहुँचाना था। बिरजू महाराज ने अपनी प्रारंभिक नृत्य शिक्षा अपने पिता से ही प्राप्त की। जब बिरजू महाराज मात्र साढ़े नौ साल के थे, तब उनके पिता का निधन हो गया। इसके बाद भी उन्होंने अपने पिता की दी हुई शिक्षा को जीवनभर संजोए रखा और कथक नृत्य में ऊँचाइयों तक पहुँचे।
प्रश्न 6. बिरजू महाराज ने नृत्य की शिक्षा किसे और कब देने शुरू की?
उत्तर: बिरजू महाराज ने नृत्य की शिक्षा सबसे पहले रश्मि जी को देने शुरू की। यह लगभग 1956 के आस-पास की बात है, जब वे एक योग्य शिष्य की तलाश में थे, जो उनके द्वारा सिखाई जाने वाली नृत्यकला को सही ढंग से ग्रहण कर सके। रश्मि जी में उन्हें वह गुणवत्ता नजर आई, जो वे खोज रहे थे। इसके बाद उन्होंने रश्मि जी को नृत्य की बारीकियाँ सिखानी शुरू की, जिससे वे एक कुशल कथक नृत्यांगना बन सकें।
प्रश्न 7. बिरजू महाराज के जीवन में सबसे दुःखद समय कब आया? उससे संबंधित प्रसंग का वर्णन कीजिए।
उत्तर: बिरजू महाराज के जीवन का सबसे दुःखद समय तब आया जब उनके बाबूजी का निधन हुआ। उस समय उनके परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि दसवाँ और तेरहवीं की रस्में पूरी करने के लिए भी पैसे नहीं थे। मजबूरी में, बिरजू महाराज ने दस दिन के अंदर दो प्रोग्राम किए और 500 रुपये इकट्ठा किए, जिससे वे इन रस्मों को निभा सके। इस कठिन परिस्थिति में उन्हें नृत्य करके पैसा जुटाना पड़ा, जो उनके जीवन का सबसे दुःखद समय था।
प्रश्न 8. शंभू महाराज के साथ बिरजू महाराज के संबंध में प्रकाश डालिए।
उत्तर: शंभू महाराज, बिरजू महाराज के चाचा थे, और उनके साथ बिरजू महाराज का गहरा संबंध था। बचपन में बिरजू महाराज ने शंभू महाराज के साथ कई मंचों पर नृत्य किया। आगे चलकर भारतीय कला केंद्र में उन्हें शंभू महाराज का सान्निध्य मिला, और उनके साथ सहायक के रूप में काम करते हुए उन्होंने कला के क्षेत्र में काफी विकास किया। शंभू महाराज के मार्गदर्शन ने बिरजू महाराज के नृत्यकला को और भी समृद्ध किया।
प्रश्न 9. कलकत्ते के दर्शकों की प्रशंसा का बिरजू महाराज के नर्तक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर: कलकत्ते में एक कॉन्फ्रेंस में बिरजू महाराज के नृत्य प्रदर्शन को दर्शकों ने खूब सराहा। उनकी प्रशंसा तमाम अखबारों में छपने लगी, जिससे उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया। इस घटना के बाद से बिरजू महाराज ने नृत्यकला के क्षेत्र में निरंतर प्रगति की और वे एक प्रमुख कथक नर्तक के रूप में उभरकर सामने आए।
प्रश्न 10. संगीत भारती में बिरजू महाराज की दिनचर्या क्या थी?
उत्तर: संगीत भारती में बिरजू महाराज को प्रारंभ में 250 रुपये वेतन मिलता था। वे दरियागंज में रहते थे और रोज़ पाँच या नौ नंबर की बस पकड़कर संगीत भारती पहुंचते थे। वहाँ उन्हें प्रदर्शन का अवसर कम मिलता था, जिससे वे निराश हो गए और अंततः उन्होंने वह नौकरी छोड़ दी।
प्रश्न 11. बिरजू महाराज कौन-कौन से वाद्य बजाते थे?
उत्तर: बिरजू महाराज कई वाद्य यंत्र बजाते थे, जिनमें सितार, गिटार, हारमोनियम, बाँसुरी, तबला, और सरोद शामिल हैं।
प्रश्न 12. अपने विवाह के बारे में बिरजू महाराज क्या बताते हैं?
उत्तर: बिरजू महाराज की शादी 18 साल की उम्र में हुई थी। वे इसे अपनी गलती मानते हैं, क्योंकि यह निर्णय उनके बाबूजी की मृत्यु के बाद उनकी माँ के घबराने के कारण जल्दबाजी में लिया गया था। वे यह भी मानते हैं कि शादी की वजह से उन्हें नौकरी करने की बाध्यता में आना पड़ा, जो उनके लिए नुकसानदेह साबित हुआ।
प्रश्न 13. बिरजू महाराज की अपने शागिर्दों के बारे में क्या राय है?
उत्तर: बिरजू महाराज अपने शिष्यों को बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं और उनके प्रति स्नेह और गर्व महसूस करते हैं। वे अपनी शिष्या रश्मि वाजपेयी को विशेष रूप से उल्लेख करते हैं और उन्हें “शाश्वती” कहते हैं। इसके अलावा, उन्होंने वैरोनिक, फिलिप, मेक्लीन, टॉक, तीरथ प्रताप, प्रदीप, दुर्गा आदि को भी अपना प्रमुख शिष्य बताया है। वे इन सभी शिष्यों की तरक्की और प्रगति को देखकर प्रसन्न होते हैं और उनकी उन्नति पर गर्व महसूस करते हैं।
प्रश्न 14. व्याख्या करें:
(क) “पांच सौ रुपए देकर मैंने गण्डा बंधवाया।”
व्याख्या: प्रस्तुत पंक्ति ‘जित-जित मैं निरखत हूँ’ पाठ से ली गई है, जिसमें बिरजू महाराज अपने गुरु-शिष्य संबंध का वर्णन करते हैं। बिरजू महाराज को उनके पिताजी से ही नृत्य की शिक्षा मिली थी, जो उनके गुरु भी थे। जब बिरजू महाराज को अपने पिताजी से गंडा बंधवाने की बात आई, तो उनके पिताजी ने कहा कि जब तक वे गुरु दक्षिणा नहीं देंगे, तब तक वे गंडा नहीं बांधेंगे। बिरजू महाराज ने दो कार्यक्रमों से 500 रुपये कमाए और अपने पिताजी को गुरु दक्षिणा के रूप में दिए, जिसके बाद उनके पिताजी ने उन्हें गंडा बांधा। यह पंक्ति गुरु-शिष्य परंपरा की पवित्रता और मर्यादा को दर्शाती है, जो पिता-पुत्र के संबंध से भी ऊपर है।
(ख) “मैं कोई चीज चुराता नहीं हूँ कि अपने बेटे के लिए ये रखना है, उसको सिखाना है।”
व्याख्या: प्रस्तुत पंक्ति ‘जित-जित मैं निरखत हूँ’ पाठ से ली गई है, जिसमें बिरजू महाराज की गुरु-शिष्य परंपरा और उनकी शिक्षा के प्रति निष्पक्षता को दर्शाया गया है। बिरजू महाराज का कहना है कि वे नृत्य सिखाने में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं करते थे। वे लड़का-लड़की या पुत्र-शिष्य में कोई अंतर नहीं रखते थे और सबको समान रूप से शिक्षा देते थे। उनकी यह पंक्ति उनकी निष्पक्षता, सद्भावना, और पवित्र मनोभावना को प्रकट करती है, जिसमें वे सभी शिष्यों को समान दृष्टि से देखते थे।
(ग) “मैं तो बेचारा उसका असिस्टेंट हूँ। उस नाचने वाले का।”
व्याख्या: प्रस्तुत पंक्ति ‘जित-जित मैं निरखत हूँ’ पाठ से ली गई है, जिसमें बिरजू महाराज अपने नृत्य और व्यक्तिगत जीवन के बारे में बात कर रहे हैं। इस पंक्ति में वे अपनी विनम्रता को व्यक्त करते हुए कहते हैं कि लोग उनके नृत्य को देखकर प्रभावित होते हैं और उनकी तारीफ करते हैं। परंतु बिरजू महाराज इसे अपनी नहीं, बल्कि अपनी कला की प्रशंसा मानते हैं। वे कहते हैं कि वे केवल उस नृत्य के सहायक हैं, असिस्टेंट हैं। इस पंक्ति से यह संदेश मिलता है कि कला या गुण सर्वोपरि होता है, और व्यक्ति को उसकी गुणवत्ता के कारण सम्मान मिलता है।
प्रश्न 15. बिरजू महाराज अपना सबसे बड़ा जज किसको मानते थे?
उत्तर: बिरजू महाराज अपना सबसे बड़ा जज अपनी अम्मा को मानते थे। जब वे नाचते थे और उनकी अम्मा देखती थीं, तो वे हमेशा उनसे अपनी नृत्य कला की कमी या अच्छाई के बारे में पूछते थे। अम्मा ने बाबूजी से तुलना करके बिरजू महाराज के नृत्य में निखार लाने का काम किया।
प्रश्न 16. पुराने और आज के नर्तकों के बीच बिरजू महाराज क्या फर्क पाते हैं?
उत्तर: बिरजू महाराज पुराने और आज के नर्तकों के बीच कई फर्क पाते थे। पुराने नर्तक कला प्रदर्शन को शौक के रूप में करते थे और साधनों के अभाव में भी उनमें उत्साह था। वे छोटी-छोटी सुविधाओं के अभाव में भी बेपरवाह होकर नृत्य करते थे। आज के नर्तक, हालांकि सभी सुविधाओं से लैस हैं, मंच की छोटी-छोटी गलतियों को ढूंढते हैं और उनकी चर्चा करते हैं, जो पहले नहीं होता था।
प्रश्न 17. पांच सौ रुपए देकर गण्डा बंधवाने का क्या अर्थ है?
उत्तर: बिरजू महाराज के पिता ही उनके गुरु थे, और गुरु-शिष्य की परंपरा को मान्यता देने के लिए गण्डा बांधने की रस्म निभाई जाती थी। गण्डा बंधवाना एक प्रतीकात्मक अनुष्ठान था, जिसमें गुरु अपने शिष्य को औपचारिक रूप से स्वीकार करता है। बिरजू महाराज ने अपने पिता से गण्डा बंधवाने के लिए अपनी कमाई के 500 रुपये गुरु दक्षिणा के रूप में दिए, जिससे उनके पिता ने उन्हें शिष्य के रूप में स्वीकार किया।
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