Bihar Board Class 10th Hindi Chapter 7 : बिहार बोर्ड कक्षा 10 के विषय हिंदी गोधूलि भाग 2 पाठ 7. परंपरा का मुल्यांकन जो एक निबंध है जिसे रामविलाश शर्मा के द्वारा लिखा गया है | इस पाठ के सभी महत्पूर्ण बिंदु और महत्पूर्ण सवालों को जानेगें हो आपको प्रतियोगिता परीक्षा में निश्चित ही सफलता दिलाएगी | तो इसे शुरू से अंत तक जरुर पढ़ें |
“परंपरा का मूल्यांकन” निबंध के महत्वपूर्ण बिंदु (संक्षेप में):
- परंपरा की अवधारणा: समाज की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर, जो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती है।
- महत्व: सामाजिक एकता, पहचान, और नैतिक शिक्षा की स्थापना में सहायक होती है।
- आधुनिकता और परंपरा: आधुनिकता के साथ परंपरा में बदलाव आ सकते हैं, परंतु दोनों के बीच संतुलन बनाए रखना जरूरी है।
- आलोचनात्मक मूल्यांकन: सभी परंपराएँ सकारात्मक नहीं होतीं; नकारात्मक पहलुओं की भी समीक्षा आवश्यक है।
- उपसंहार: परंपराओं को अंधानुकरण के रूप में नहीं, बल्कि समय और समाज की आवश्यकताओं के अनुसार संशोधित किया जाना चाहिए।
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Bihar Board Class 10th Hindi Chapter 7 . नागरी लिपि ( निबंध )
Board Name | Bihar School Examination Board |
Class | 10th |
Subject | Hindi ( गोधूलि भाग-2 ) |
Chapter | 7 . नागरी लिपि ( निबंध ) |
Writer | रामविलाश शर्मा |
Section | गद्यखंड |
Language | Hindi |
Exam | 2025 |
Last Update | Last Weeks |
Marks | 100 |
7 . नागरी लिपि ( निबंध )
“परंपरा का मूल्यांकन” निबंध के महत्वपूर्ण बिंदु:
- परंपरा की अवधारणा:
- परंपरा का तात्पर्य उन मूल्यों, मान्यताओं, और रीति-रिवाजों से है जो समाज में पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होते हैं।
- ये परंपराएँ समाज की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को संजोकर रखती हैं।
- परंपरा का महत्व:
- परंपरा समाज के एकत्व और स्थिरता को बनाए रखने में सहायक होती है।
- यह सामाजिक पहचान और एकता का प्रतीक होती है, जो लोगों को उनके पूर्वजों से जोड़ती है।
- परंपराएँ व्यक्ति और समाज की नैतिक शिक्षा और संस्कारों को स्थापित करने में सहायक होती हैं।
- परंपरा और आधुनिकता:
- निबंध में यह विचार किया गया है कि आधुनिकता के साथ परंपरा की भूमिका कैसे बदलती है।
- आधुनिक समाज में परंपराओं की प्रासंगिकता पर सवाल उठाए जाते हैं, लेकिन लेखक का तर्क है कि परंपरा और आधुनिकता के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है।
- आधुनिकता के प्रभाव से परंपराओं में बदलाव आ सकता है, लेकिन इसकी अस्मिता और मूल्यों को बनाए रखना भी महत्वपूर्ण है।
- परंपरा का आलोचनात्मक मूल्यांकन:
- लेखक ने परंपराओं के प्रति आलोचनात्मक दृष्टिकोण अपनाया है और बताया है कि सभी परंपराएँ सकारात्मक नहीं होतीं।
- कुछ परंपराएँ समाज में असमानता और भेदभाव को बढ़ावा दे सकती हैं।
- परंपराओं को उनके सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं के आधार पर मूल्यांकित किया जाना चाहिए।
- उपसंहार:
- लेखक का मानना है कि परंपराओं को केवल अंधानुकरण के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि उन्हें समाज की आवश्यकता और समय के अनुसार संशोधित किया जाना चाहिए।
- समाज को चाहिए कि वह परंपराओं को नए संदर्भ में समझे और उन्हें विकसित करता रहे ताकि वे आधुनिक समाज के साथ सामंजस्य बनाए रख सकें।
यह निबंध परंपरा की महत्वता, उसकी भूमिका, और उसकी आलोचनात्मक समीक्षा के पहलुओं पर गहराई से विचार करता है और परंपरा और आधुनिकता के बीच संतुलन बनाए रखने के महत्व को रेखांकित करता है।
यहाँ परंपरा का मूल्यांकन के महत्वपूर्ण बिंदुओं पर आधारित प्रश्नों के उत्तर प्रस्तुत हैं:
नागरी लिपि ( निबंध ) के महत्पूर्ण प्रश्न और उत्तर
पाठ के साथ
प्रश्न 1: परंपरा का ज्ञान किनके लिए सबसे ज्यादा आवश्यक है और क्यों?
उत्तर: साहित्य में युग-परिवर्तन और क्रांतिकारी साहित्य रचना के इच्छुक लोगों के लिए परंपरा का ज्ञान अत्यधिक आवश्यक है। इसका कारण यह है कि परंपरा से साहित्य की प्रगतिशील आलोचना का ज्ञान प्राप्त होता है। परंपरा का अध्ययन करके हम समझ सकते हैं कि साहित्य की धारा को कैसे मोड़ा जा सकता है और किस प्रकार नए प्रगतिशील साहित्य का निर्माण किया जा सकता है। परंपरा का ज्ञान हमें पिछले युगों की साहित्यिक प्रवृत्तियों और उनके विकास की प्रक्रिया को समझने में मदद करता है, जो नए साहित्यिक दृष्टिकोण और नवाचार के लिए आधार प्रदान करता है।
प्रश्न 2: परंपरा के मूल्यांकन में साहित्य के वर्गीय आधार का विवेक लेखक क्यों महत्त्वपूर्ण मानता है?
उत्तर: साहित्य के वर्गीय आधार का विवेक परंपरा के मूल्यांकन में इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमें यह समझने में मदद करता है कि साहित्य किस वर्ग के हितों का प्रतिनिधित्व करता है।
शोषक वर्गों के विरुद्ध श्रमिक जनता के हितों को प्रतिबिंबित करने वाले साहित्य को मूल्यांकन में प्राथमिकता दी जाती है। इसके अलावा, यह देखने का प्रयास किया जाता है कि साहित्य का आधार शोषित जनता के श्रम पर आधारित है और वर्तमान काल में वह जनता के लिए कितनी उपयोगी है। वर्गीय आधार का विवेक यह सुनिश्चित करता है कि साहित्य का मूल्यांकन सामाजिक और आर्थिक संदर्भों में हो, जिससे उसका वास्तविक प्रभाव और उपयोगिता स्पष्ट हो सके।
प्रश्न 3: साहित्य का कौन-सा पक्ष अपेक्षाकृत स्थायी होना है? इस संबंध में लेखक की राय स्पष्ट करें।
उत्तर: लेखक के अनुसार, साहित्य का वह पक्ष अपेक्षाकृत स्थायी होता है जो मनुष्य की आदिम भावनाओं और इंद्रिय बोध को व्यक्त करता है। साहित्य केवल विचारधारा का प्रतिनिधित्व नहीं करता, बल्कि इसमें मनुष्य की मूलभूत भावनाएँ और उसकी प्राणीगत अवस्थाएँ भी निहित होती हैं। इस प्रकार, साहित्य का भावनात्मक और संवेदनात्मक पक्ष स्थायी होता है, क्योंकि यह मानवीय अनुभव और संवेदनाओं की गहराई को उजागर करता है, जो समय के साथ भी समान रहता है। यह पक्ष मानवता के सार्वभौमिक तत्वों को प्रतिबिंबित करता है, जो किसी भी युग में प्रासंगिक रहते हैं।
प्रश्न 4: “साहित्य में विकास प्रक्रिया उसी तरह सम्पन्न नहीं होती जैसे समाज में” लेखक का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: लेखक के अनुसार, साहित्य में विकास प्रक्रिया समाज के विकास-क्रम से भिन्न होती है। समाज में विकास एक क्रमिक प्रक्रिया है, जिसमें सामाजिक और आर्थिक बदलावों की तुलना की जा सकती है, जैसे पूँजीवादी और समाजवादी सभ्यताओं का तुलनात्मक अध्ययन।
इसके विपरीत, साहित्य का विकास ऐसा नहीं होता। साहित्यिक परंपराएँ पूर्ववर्ती रचनाओं से प्रेरित होती हैं, लेकिन वे नकल करके नहीं बल्कि नई परंपराओं का निर्माण करके आगे बढ़ती हैं। उदाहरण के लिए, औद्योगिक उत्पादन और कलात्मक सौंदर्य स्थिर नहीं रहते; अमेरिका और रूस ने एटम बम बनाया, लेकिन शेक्सपियर के नाटकों जैसी कलात्मक उत्कृष्टता दोबारा नहीं उभरी। इस प्रकार, साहित्य का विकास समाज के विकास की प्रक्रिया से अलग और स्वायत्त होता है।
प्रश्न 5: लेखक मानव चेतना को आर्थिक संबंधों से प्रभावित मानते हुए भी उसकी स्वाधीनता किन दृष्टांतों द्वारा प्रमाणित करता है?
उत्तर: लेखक मानते हैं कि आर्थिक संबंध मानव चेतना को प्रभावित करते हैं, लेकिन चेतना पूरी तरह से निर्धारित नहीं होती। लेखक ने इस स्वाधीनता को कुछ उदाहरणों से प्रमाणित किया है:
- एथेन्स और अमरीका: एथेन्स में गुलामी के बावजूद उसकी सभ्यता ने यूरोप पर गहरा प्रभाव डाला, जबकि अमरीका की गुलामी के बावजूद वहाँ से कोई महत्वपूर्ण सांस्कृतिक योगदान नहीं मिला।
- सामंतवाद और कविता: सामंतवाद की स्थिति में भी भारत और इटली में ही महान कविता का जन्म हुआ।
- पूंजीवादी विकास: पूंजीवादी विकास यूरोप के कई देशों में हुआ, लेकिन रैफेल, दा विंची, और माइकेल एंजेलो जैसे कलाकार केवल इटली की देन थे।
इन दृष्टांतों से लेखक ने साबित किया है कि सामाजिक परिस्थितियों के बावजूद, कला और साहित्य का विकास स्वतंत्र रूप से होता है और समान परिस्थितियों में भी कला का विकास समान नहीं होता।
प्रश्न 6: साहित्य के निर्माण में प्रतिभा की भूमिका स्वीकार करते हुए लेखक किन खतरों से अगाह करता है?
उत्तर: लेखक स्वीकार करते हैं कि साहित्य के निर्माण में प्रतिभा की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, लेकिन इसके साथ ही उन्होंने कुछ खतरों की ओर भी संकेत किया है:
- दोषमुक्त मानना: यह मान लेना कि प्रतिभाशाली रचनाकारों की सभी रचनाएँ दोषमुक्त होती हैं, साहित्य के विकास में खतरनाक हो सकता है।
- नवीनता की गुंजाइश: प्रतिभाशाली रचनाकारों की उपलब्धियों के बावजूद, नई और महत्वपूर्ण रचनाओं की गुंजाइश बनी रहती है। इसलिए, उनकी रचनाओं को केवल अद्वितीय मानकर उनके द्वारा किए गए दोषों को नजरअंदाज करना गलत हो सकता है।
इस प्रकार, लेखक यह चेतावनी देते हैं कि प्रतिभा की भूमिका महत्वपूर्ण है, लेकिन इसके साथ ही रचनाओं की आलोचना और सुधार की गुंजाइश को भी ध्यान में रखना आवश्यक है।
प्रश्न 7: राजनीतिक मूल्यों से साहित्य के मूल्य अधिक स्थायी कैसे होते हैं?
उत्तर: साहित्य के मूल्य राजनीतिक मूल्यों की तुलना में अधिक स्थायी होते हैं क्योंकि साहित्य की अमरता उसकी कालातीतता में निहित होती है। उदाहरण के लिए, अंग्रेज कवि टेनिसन ने लैटिन कवि वर्जिल के काव्य की चर्चा की, जिसमें वर्जिल के काव्य की ध्वनि तरंगें आज भी सुनाई देती हैं, जबकि रोमन साम्राज्य का वैभव समाप्त हो गया। इसी तरह, शेक्सपियर, मिल्टन, और शेली जैसे साहित्यकारों का कार्य ब्रिटिश साम्राज्य के पतन के बाद भी विश्व संस्कृति में चमकता रहेगा। राजनीतिक मूल्य काल के साथ नष्ट हो जाते हैं, जबकि साहित्य के मूल्य निरंतर विकासशील और स्थायी रहते हैं।
प्रश्न 8: जातीय अस्मिता का लेखक किस प्रसंग में उल्लेख करता है और उसका क्या महत्त्व बताता है?
उत्तर: लेखक जातीय अस्मिता की चर्चा साहित्यिक परंपरा में उसकी भूमिका के संदर्भ में करते हैं। जब मानव समाज एक व्यवस्था से दूसरी व्यवस्था में प्रवेश करता है, तब उसकी जातीय अस्मिता नष्ट नहीं होती। समाज अपनी पुरानी अस्मिता को बनाए रखता है, जो जाति को एकसाथ संगठित करती है। यह अस्मिता साहित्यिक परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती है, जो ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परंपराओं को संरक्षित करती है और साहित्यिक परंपरा का ज्ञान बनाए रखती है।
प्रश्न 9: जातीय और राष्ट्रीय अस्मिताओं के स्वरूप का अंतर करते हुए लेखक दोनों में क्या समानता बताता है?
उत्तर: जातीय और राष्ट्रीय अस्मिताओं के स्वरूप में अंतर होते हुए भी लेखक उनके बीच समानता को उजागर करते हैं। जब राष्ट्र संकट में होता है, जैसे हिटलर द्वारा सोवियत संघ पर आक्रमण के समय, राष्ट्रीय अस्मिता और साहित्यिक परंपरा का ज्ञान राष्ट्र के संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। रूसी जाति ने अपने साहित्यिक परंपरा का स्मरण कर अपनी राष्ट्रीय अस्मिता को पुष्ट किया। इसी प्रकार, जातीय अस्मिता भी सामाजिक व्यवस्था में बदलाव के बावजूद कायम रहती है और सशक्त होती है।
प्रश्न 10: बहुजातीय राष्ट्र की हैसियत से कोई भी देश भारत का मुकाबला क्यों नहीं कर सकता?
उत्तर: भारत की बहुजातीय राष्ट्र की हैसियत को देखते हुए, किसी भी अन्य देश का भारत का मुकाबला करना मुश्किल है। भारत की राष्ट्रीयता विभिन्न जातियों पर राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित करने से नहीं, बल्कि उसकी संस्कृति और इतिहास की देन है।
भारतीय साहित्य की परंपरा और कवियों की महत्वपूर्ण भूमिका इसे अन्य देशों से अलग करती है। भारत के सामाजिक और सांस्कृतिक विकास में साहित्यिक परंपरा का मूल्यांकन और योगदान अतुलनीय है, जिसे अन्य देशों की तुलना में अद्वितीय माना जाता है।
प्रश्न 11: भारत की बहुजातीयता मुख्यत: संस्कृति और इतिहास की देन है। कैसे?
उत्तर: भारत की बहुजातीयता मुख्यतः उसकी संस्कृति और इतिहास की देन है। यहाँ की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता ने एक व्यापक और समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा का निर्माण किया है। व्यास और वाल्मीकि जैसे महान कवियों ने महाभारत और रामायण के माध्यम से भारतीय साहित्य की एकता स्थापित की। इन ग्रंथों ने विभिन्न जातियों की अस्मिता को सम्मान प्रदान किया और भारतीय संस्कृति को समृद्ध किया।
भारत में जातियों का आपसी मेल-जोल और उनके साझा इतिहास ने एकता और समरसता की भावना को बढ़ावा दिया। इस प्रकार, भारत की बहुजातीयता को सांस्कृतिक एकता और इतिहास की देन माना जा सकता है, जहाँ एक जाति ने दूसरी जातियों पर प्रभुत्व स्थापित नहीं किया बल्कि आपसी सहयोग और सांस्कृतिक समन्वय से एकजुटता बढ़ाई।
प्रश्न 12: किस तरह समाजवाद हमारी राष्ट्रीय आवश्यकता है? इस प्रसंग में लेखक के विचारों पर प्रकाश डालें।
उत्तर: लेखक के अनुसार, समाजवादी व्यवस्था राष्ट्रीय आवश्यकता है क्योंकि यह पूंजीवादी व्यवस्था की तुलना में अधिक समानता और न्याय प्रदान करती है। पूंजीवादी व्यवस्था में शक्ति का अत्यधिक अपव्यय होता है और साधनों का उचित उपयोग नहीं हो पाता। समाजवाद के तहत, साधनों का सबसे अच्छा उपयोग संभव होता है, जो राष्ट्र की प्रगति को तेज करता है। लेखक ने उदाहरण के तौर पर जारशाही रूस का उल्लेख किया, जिसने समाजवादी व्यवस्था अपनाने के बाद अपने राष्ट्र को पुनर्गठित किया और शक्तिशाली बना। समाजवाद के माध्यम से भारत की राष्ट्रीय क्षमता का पूर्ण विकास संभव है, क्योंकि यह सामाजिक और आर्थिक समानता को बढ़ावा देता है।
प्रश्न 13: निबंध का समापन करते हुए लेखक कैसा स्वप्न देखता है? उसके साकार करने में परंपरा की क्या भूमिका हो सकती है?
उत्तर: लेखक भारत में अधिक साक्षरता का स्वप्न देखता है, जिसमें जनता को साहित्य पढ़ने का अवसर और सुविधा मिले। जब अधिक लोग साक्षर होंगे, तब रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों के करोड़ों नए पाठक होंगे। सांस्कृतिक आदान-प्रदान होगा और लोग विभिन्न भाषाओं के साहित्य को एक-दूसरे की भाषा में पढ़ेंगे। इस प्रकार, विभिन्न भाषाओं में लिखा गया साहित्य जातीय सीमाओं को पार करके राष्ट्रीय सम्पत्ति बनेगा। परंपरा इस स्वप्न के साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी, क्योंकि यह साहित्यिक और सांस्कृतिक धरोहर का निरंतर योगदान प्रदान करती है। यह भारतीय साहित्य को विश्व मंच पर एक गौरवपूर्ण स्थान दिलाने में सहायक होगी और एशिया की भाषाओं के साहित्य से गहरा परिचय प्रदान करेगी।
प्रश्न 14: साहित्य सापेक्ष रूप में स्वाधीन होता है। इस मत को प्रमाणित करने के लिए लेखक ने कौन-से तर्क और प्रमाण उपस्थित किए हैं?
उत्तर: लेखक ने साहित्य की स्वाधीनता के मत को प्रमाणित करने के लिए निम्नलिखित तर्क और प्रमाण प्रस्तुत किए हैं:
- भौतिकवाद और चेतना: द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के अनुसार, मनुष्य की चेतना आर्थिक सम्बन्धों से प्रभावित होती है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि चेतना पूरी तरह से परिस्थितियों द्वारा निर्धारित होती है। मनुष्य और परिस्थितियों के बीच द्वन्द्वात्मक संबंध होते हैं, जिससे साहित्य की स्वाधीनता सुनिश्चित होती है।
- ऐतिहासिक उदाहरण:
- एथेन्स और अमेरिका: गुलामी की स्थिति अमरीका और एथेन्स दोनों में थी, परंतु एथेन्स की सभ्यता ने पूरे यूरोप को प्रभावित किया। इसके विपरीत, अमरीका में गुलामों के मालिकों ने मानव संस्कृति में कोई महत्वपूर्ण योगदान नहीं दिया।
- यूरोप और इटली: पूँजीवादी विकास यूरोप के कई देशों में हुआ, लेकिन महान कलाकार रैफेल, लेओनार्दो दा विंची और माइकेल एंजेलो जैसे व्यक्तित्व इटली से उत्पन्न हुए। यह दिखाता है कि साहित्य और कला की गुणवत्ता का निर्धारण केवल सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों पर निर्भर नहीं होता।
- प्रतिभा और नवाचार: साहित्य के निर्माण में प्रतिभाशाली मनुष्यों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि साहित्य केवल इन प्रतिभाओं तक सीमित रहता है। साहित्य में हमेशा कुछ नया करने की गुंजाइश बनी रहती है, जो यह प्रमाणित करता है कि साहित्य सापेक्ष रूप में स्वाधीन होता है।
प्रश्न 15: व्याख्या करें। विभाजित बंगाल से विभाजित पंजाब की तुलना कीजिए, तो ज्ञात हो जाएगा कि साहित्य की परंपरा का ज्ञान कहाँ ज्यादा है, कहाँ कम है और इस न्यूनाधिक ज्ञान के सामाजिक परिणाम क्या होते हैं।
व्याख्या: प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक ने इतिहास और संस्कृति की परंपरा के महत्व को रेखांकित किया है। जब समाज बदलता है और अपनी पुरानी अस्मिता को बनाए रखता है, तो इसमें इतिहास और संस्कृति की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
- विभाजित बंगाल: पूर्वी और पश्चिमी बंगाल के लोगों के बीच साहित्यिक परंपरा का ज्ञान बनाए रखने से बंगाली जाति सांस्कृतिक रूप से अविभाजित रहती है। साहित्यिक परंपरा के ज्ञान से सांस्कृतिक एकता और पहचान बनी रहती है।
- विभाजित पंजाब: विभाजित पंजाब की तुलना में, साहित्यिक परंपरा का ज्ञान कम होने के कारण सामाजिक और सांस्कृतिक असंतुलन उत्पन्न हो सकता है। यह दिखाता है कि साहित्य की परंपरा का ज्ञान समाज की सांस्कृतिक एकता और प्रगतिशीलता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
इन पंक्तियों का मूल आशय यह है कि साहित्य और सांस्कृतिक परंपरा जातियों को संगठित और प्रगतिशील बनाने में सहायक होती हैं। अस्मिता की रक्षा और सामाजिक स्थिरता के लिए ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परंपरा का ज्ञान अत्यंत महत्वपूर्ण है।
महत्पूर्ण लिंक
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