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Bihar Board Class 10th Hindi Chapter 4

Free Bihar Board Class 10th Hindi Chapter 4 : नाखून क्यों बढ़ते हैं ( ललित निबंध )

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Table of Contents

Bihar Board Class 10th Hindi Chapter 4 : बिहार बोर्ड के हिंदी विषय के पाठ 4 नाख़ून क्यों बढ़ते हैं उसके बारे में विस्तार से जानेगें और महत्पूर्ण सवालों के उत्तर जानते हैं जो की प्रतियोगिता परीक्षा में पूछे जाते हैं | जिसे पढ़कर आप निश्चित ही सफलता प्राप्त करेगें | मुझे आशा की ही आपको यह चेप्टर सभी जानकारी मिल जाएगी | बिहार बोर्ड के हिंदी के सभी पाठ के महत्पूर्ण लिंक आर्टिकल के निचे दिया गया है आप जरुर देखे |

“नाखून क्यों बढ़ते हैं?” (ललित निबंध)

नाखूनों की वृद्धि एक प्राकृतिक और दिलचस्प प्रक्रिया है। नाखून केराटिन प्रोटीन से बने होते हैं और उनकी वृद्धि नखदंत (nail matrix) में नई कोशिकाओं के निर्माण से होती है। ये कोशिकाएँ बढ़कर नाखून के सिरे तक पहुँचती हैं और पुरानी कोशिकाएँ टूट जाती हैं।

अच्छे रक्त संचार, सही पोषण, और हॉर्मोनल परिवर्तन भी नाखूनों की वृद्धि को प्रभावित करते हैं। रक्त वाहिकाएँ नखदंत तक पोषक तत्व और ऑक्सीजन पहुँचाती हैं, जबकि विटामिन और मिनरल्स नाखूनों की मजबूती और स्वास्थ्य में योगदान देते हैं। हॉर्मोनल बदलाव, जैसे कि युवावस्था और गर्भावस्था, भी नाखूनों की तेजी से वृद्धि का कारण बन सकते हैं।

इस प्रकार, नाखूनों की वृद्धि कोशिकाओं की वृद्धि, रक्त संचार, पोषण, और हॉर्मोनल परिवर्तन का परिणाम है, जो हमारे स्वास्थ्य और शरीर की जटिल कार्यप्रणाली को दर्शाता है।

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Bihar Board Class 10th Hindi Chapter 4 : नाखून क्यों बढ़ते हैं ( ललित निबंध )

Board NameBihar School Examination Board
Class10th
SubjectHindi ( गोधूलि भाग-2 )
Chapterनाखून क्यों बढ़ते हैं ( ललित निबंध )
Writerहजारी प्रसाद द्विवेदी
LanguageHindi
Exam2025
Last UpdateLast Weeks
Marks100

नाखून क्यों बढ़ते हैं ( ललित निबंध )

“नाखून क्यों बढ़ते हैं?” (ललित निबंध)

परिचय:
नाखून हमारे शरीर का एक सामान्य लेकिन महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। वे न केवल हमारे हाथों और पैरों की सुंदरता में योगदान देते हैं, बल्कि हमारे स्वास्थ्य और कार्यक्षमता के भी महत्वपूर्ण संकेतक होते हैं। लेकिन, नाखून क्यों बढ़ते हैं? यह एक दिलचस्प और जिज्ञासा उत्पन्न करने वाला प्रश्न है। इस ललित निबंध में हम नाखूनों की वृद्धि के पीछे के वैज्ञानिक कारणों को सरल और स्पष्ट तरीके से समझेंगे।

नाखूनों की संरचना:
नाखूनों की वृद्धि को समझने के लिए पहले उनकी संरचना को जानना महत्वपूर्ण है। नाखून एक प्रकार की केराटिन (keratin) प्रोटीन से बने होते हैं, जो कि त्वचा के ऊपरी सतह पर पाया जाता है। नाखून का मुख्य भाग “नखदंत” (nail matrix) में उत्पन्न होता है, जो नाखून की जड़ों के नीचे स्थित होता है। यहाँ पर नई कोशिकाएँ बनती हैं और पुरानी कोशिकाएँ पिघलकर नाखून का निर्माण करती हैं।

नाखूनों की वृद्धि के कारण:

  1. कोशिकाओं की वृद्धि:
    नाखूनों की वृद्धि की प्रक्रिया मुख्य रूप से कोशिकाओं की वृद्धि और विभाजन पर निर्भर करती है। नखदंत में मौजूद कोशिकाएँ निरंतर विभाजित होती हैं, जिससे नई कोशिकाएँ उत्पन्न होती हैं। पुरानी कोशिकाएँ बढ़कर नाखून के सिरे तक पहुँचती हैं और बाद में टूट जाती हैं। यह प्रक्रिया नाखून के बढ़ने का मुख्य कारण है।
  2. रक्त संचार:
    नाखूनों की वृद्धि में अच्छे रक्त संचार की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। रक्त वाहिकाएँ नखदंत तक पोषक तत्व और ऑक्सीजन पहुँचाती हैं, जो नाखूनों की स्वास्थ्य और वृद्धि के लिए आवश्यक होते हैं। जब रक्त संचार सही रहता है, तो नाखून तेजी से बढ़ते हैं।
  3. पोषण और आहार:
    नाखूनों की वृद्धि का सीधा संबंध हमारे आहार से भी है। हमारे आहार में मौजूद विटामिन, मिनरल्स, और प्रोटीन नाखूनों के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। विशेष रूप से बायोटिन, विटामिन E, और जिंक जैसे पोषक तत्व नाखूनों की मजबूती और वृद्धि को समर्थन देते हैं।
  4. हॉर्मोनल परिवर्तन:
    हॉर्मोनल परिवर्तन भी नाखूनों की वृद्धि पर प्रभाव डालते हैं। विशेष रूप से युवावस्था, गर्भावस्था, और अन्य हॉर्मोनल परिवर्तनों के दौरान नाखून तेजी से बढ़ सकते हैं। यह शरीर में हॉर्मोन स्तर की वृद्धि के कारण होता है, जो कोशिकाओं की वृद्धि को उत्तेजित करता है।

निष्कर्ष:
नाखूनों की वृद्धि एक जटिल लेकिन दिलचस्प प्रक्रिया है, जो कोशिकाओं की वृद्धि, रक्त संचार, पोषण, और हॉर्मोनल परिवर्तन के संयोजन पर निर्भर करती है। हमारे नाखून केवल एक सुंदरता का प्रतीक नहीं हैं, बल्कि वे हमारे स्वास्थ्य का भी संकेत देते हैं।

नाखूनों की उचित देखभाल और स्वस्थ आहार के माध्यम से हम उनकी वृद्धि और स्वास्थ्य को बनाए रख सकते हैं। इस प्रकार, नाखूनों की वृद्धि का अध्ययन हमें शरीर की जटिल कार्यप्रणालियों को समझने में मदद करता है और हमारे जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं को उजागर करता हैं |

महत्पूर्ण प्रश्न और उत्तर

पाठ के साथ

प्रश्न 1: नाखून क्यों बढ़ते हैं? यह प्रश्न लेखक के सामने कैसे आया?

उत्तर: नाखून क्यों बढ़ते हैं? यह प्रश्न लेखक के सामने उनकी लड़की के माध्यम से आया। उनकी लड़की ने नाखूनों की वृद्धि के बारे में जिज्ञासा व्यक्त की, जिससे लेखक ने इस सामान्य लेकिन दिलचस्प प्रश्न की गहराई में जाकर उसके कारणों का अध्ययन किया। यह प्रश्न न केवल नाखूनों की वृद्धि की वैज्ञानिक प्रक्रिया को समझने की कोशिश करता है, बल्कि यह हमारे शरीर की जटिलताओं और प्राकृतिक कार्यप्रणाली पर भी ध्यान केंद्रित करता है।

प्रश्न 2: बढ़ते नाखूनों द्वारा प्रकृति मनुष्य को क्या याद दिलाती है?

उत्तर: बढ़ते नाखूनों द्वारा प्रकृति मनुष्य को यह याद दिलाती है कि वह अपनी प्राचीनता और मौलिकता को नहीं भुला सकता। प्राचीन काल में, जब मानव जंगली था और अपने नाखूनों की सहायता से जीवन की रक्षा करता था, नाखून उसके अस्तित्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थे। दाँतों के बावजूद, नाखून ही असली हथियार माने जाते थे। समय के साथ, मानवीय हथियार विकसित होकर आधुनिक बंदूकें और बम बन गए, लेकिन नाखूनों की वृद्धि यह दर्शाती है कि मनुष्य आज भी अपनी प्राचीन स्थिति को पूरी तरह से नकार नहीं सकता। बढ़ते नाखून यह संकेत देते हैं कि मनुष्य के भीतर प्राचीन नख और दांत की मूलभूत पहचान अभी भी विद्यमान है, और उसके भीतर पशु समानता की कुछ झलकियाँ अभी भी जीवित हैं।

प्रश्न 3: लेखक द्वारा नाखूनों को अस्त्र के रूप में देखना कहाँ तक संगत है?

उत्तर: लेखक द्वारा नाखूनों को अस्त्र के रूप में देखना प्राचीन काल के संदर्भ में संगत है। लाखों वर्षों पहले, जब मानव जंगली था, नाखून उसकी आत्मरक्षा और भोजन प्राप्ति के लिए महत्वपूर्ण अस्त्र थे। उस समय नाखून उसकी प्राथमिक सुरक्षा और लड़ाई का उपकरण थे। नाखूनों की महत्ता तब इतनी अधिक थी कि वे उसके अस्त्र का हिस्सा बन गए थे।

लेकिन आज के बदलते समय और सभ्यता के विकास के साथ, नाखून अस्त्र के रूप में अपनी प्राथमिकता खो चुके हैं। आधुनिकता के दौर में मनुष्य ने अपने अस्त्र-शस्त्र, आहार और जीवनशैली में कई बदलाव किए हैं। अब नाखून अस्त्र के रूप में प्रयोग नहीं होते; उनकी भूमिका सौंदर्य और व्यक्तिगत देखभाल में बदल गई है। इसलिए, जबकि प्राचीन समय में नाखून अस्त्र के रूप में महत्वपूर्ण थे, आज यह दृष्टिकोण तर्कसंगत नहीं है। आधुनिक समाज में नाखूनों की बढ़ती हुई परिभाषा सौंदर्य और स्वच्छता से संबंधित है, न कि अस्त्र के रूप में।

प्रश्न 4: मनुष्य बार-बार नाखूनों को क्यों काटता है?

उत्तर: मनुष्य बार-बार नाखूनों को इसलिए काटता है क्योंकि वह सभ्यता की दिशा में निरंतर प्रयासरत रहता है। प्राचीन काल में, जब मानव और पशु एक जैसे थे, नाखून अस्त्र के रूप में कार्य करते थे। लेकिन जैसे-जैसे सभ्यता विकसित हुई, मनुष्य ने अपनी जीवनशैली, अस्त्र-शस्त्र, और सांस्कृतिक मान्यताओं में बदलाव किया। नाखूनों को अब सौंदर्य और व्यक्तिगत देखभाल के दृष्टिकोण से देखा जाता है।

मनुष्य अब अपने नाखूनों को संवारने, उन्हें सुंदर बनाने, और पशु समानता से अलग दिखने के लिए नियमित रूप से काटता है। यह नाखूनों की पुरानी अस्त्रात्मक भूमिका को छोड़कर उन्हें आधुनिकता और सौंदर्य के मानकों के अनुरूप ढालने की प्रक्रिया है। नाखूनों को काटना अब एक व्यक्तिगत और सामाजिक आदत बन गई है, जो सभ्यता के विकास का प्रतीक है।

प्रश्न 5: सुकुमार विनोदों के लिए नाखून को उपयोग में लाना मनुष्य ने कैसे शुरू किया? लेखक ने इस संबंध में क्या बताया है?

उत्तर: लेखक ने बताया है कि जब मानव सभ्यता की ओर विकसित हुआ और पशुवत् पहचान को कम करने की प्रवृत्ति पनपी, तब नाखूनों को सजाने और संवारने की आदत भी शुरू हुई। वात्स्यायन के कामसूत्र के अनुसार, भारतवासियों ने नाखूनों को संवारने की परंपरा दो हजार वर्ष पहले विकसित की थी। उस समय नाखूनों को त्रिकोण, वर्तुलाकार, चंद्राकार, दंतुल आदि विभिन्न आकृतियों में काटना एक कलात्मक क्रिया और मनोरंजन का हिस्सा था। लोग अपनी-अपनी रुचियों के अनुसार नाखूनों को कलात्मक रूप से संवारते थे, जो विलासिता और सामाजिक स्थिति का प्रतीक था।

लेखक ने यह भी उल्लेख किया है कि भारत ने इन कलात्मक और सुकुमार विनोदों को एक नया और मानवोचित रूप प्रदान किया। इससे पता चलता है कि मनुष्यों ने अपने प्राकृतिक गुणों को बदलकर उन्हें अपनी सभ्यता और संस्कृति के अनुरूप ढाल लिया।

प्रश्न 6: नाखून बढ़ाना और उन्हें काटना कैसे मनुष्य की सहजात वृत्तियाँ हैं? इनका क्या अभिप्राय है?

उत्तर: नाखून बढ़ाना और उन्हें काटना मनुष्य की सहजात वृत्तियाँ हैं, जो अनायास और स्वाभाविक रूप से होती हैं। नाखूनों का बढ़ना एक सहज वृत्ति है, जो मानव शरीर के प्राकृतिक विकास का हिस्सा है। यह प्रक्रिया किसी विशेष प्रयास या ज्ञान के बिना स्वयं होती है।

नाखूनों को काटने की प्रवृत्ति भी मनुष्य की सहजात वृत्ति है, लेकिन यह उसके विकास और सभ्यता की निशानी है। मनुष्य ने अपनी पशुवत् पहचान को कम करने के लिए नाखूनों को काटना शुरू किया। यह बताता है कि मनुष्य ने अपनी प्राचीन पशुता को त्यागकर एक नई सभ्यता की ओर बढ़ा है।

इस प्रकार, नाखून बढ़ाना पशुता की पहचान है, जबकि नाखूनों को काटना और संवारना मनुष्यता और सभ्यता की अभिव्यक्ति है। यह बदलाव यह दर्शाता है कि मनुष्य ने अपनी प्राकृतिक वृत्तियों को सभ्यता और सामाजिक मानदंडों के अनुसार ढाला है।

प्रश्न 7: लेखक क्यों पूछता है कि मनुष्य किस ओर बढ़ रहा है, पशुता की ओर या मनुष्यता की ओर? स्पष्ट करें।

उत्तर: लेखक इस प्रश्न को उठाकर मनुष्य की वर्तमान प्रवृत्तियों और उनके समाज पर प्रभाव को लेकर अपनी चिंताओं को व्यक्त करता है। लेखक के मन में यह अंतर्द्वंद्व है कि मनुष्य आधुनिक युग में अपने विकास के बावजूद क्या पशुता की ओर बढ़ रहा है या मनुष्यता की ओर।

लेखक इस प्रश्न को लोगों के सामने रखता है क्योंकि उसे लगता है कि मनुष्य में पशुवत् प्रवृत्तियाँ बढ़ रही हैं, जैसे कि अत्याधुनिक हथियारों की ओर झुकाव और विनाशकारी अस्त्रों की वृद्धि। इन प्रवृत्तियों को देखकर ऐसा लगता है कि मनुष्य अपनी सभ्यता और मानवता को भूलता जा रहा है।

इसके विपरीत, मनुष्यता की ओर बढ़ने की प्रक्रिया में नैतिकता, संवेदनशीलता, और शांति की दिशा में प्रगति होती है। लेकिन लेखक देखता है कि वर्तमान में समाज में हिंसा और विनाश की प्रवृत्तियों का जोर बढ़ता जा रहा है, जो पशुता की ओर बढ़ने का संकेत हो सकता है। इसलिए, लेखक इस प्रश्न के माध्यम से समाज को आत्ममंथन और मूल्यांकन की ओर प्रेरित करता है कि वह किस दिशा में प्रगति कर रहा है—पशुता की ओर या मनुष्यता की ओर।

प्रश्न 8: देश की आज़ादी के लिए प्रयुक्त किन शब्दों की अर्थमीमांसा लेखक करता है और लेखक के निष्कर्ष क्या हैं?

उत्तर: लेखक “इण्डिपेण्डेन्स” शब्द की अर्थमीमांसा करता है। इस शब्द का अर्थ है ‘स्वतंत्रता’ या किसी की अधीनता का अभाव। इसके विपरीत, “स्वाधीनता” शब्द का अर्थ है ‘अपने ही अधीन रहना’। अंग्रेजी में इसे ‘सेल्फ-डिपेंडेंस’ कहा जा सकता है।

लेखक का निष्कर्ष है कि ‘स्वाधीनता’ आत्म-निर्भरता और आत्म-नियंत्रण का फल है, जो व्यक्तिगत और सामाजिक चरितार्थता की ओर ले जाती है। यह सच्ची आज़ादी उस स्थिति में होती है जब व्यक्ति अपने भीतर की स्वतंत्रता, प्रेम, और त्याग को अनुभव करता है। मनुष्य की चरितार्थता प्रेम और त्याग के माध्यम से प्राप्त होती है, जो स्वयं को समाज के भले के लिए समर्पित करने में है।

इस प्रकार, लेखक यह बताता है कि सच्ची स्वतंत्रता केवल बाहरी स्वतंत्रता में नहीं, बल्कि आंतरिक आत्म-निर्भरता और आत्म-निर्णय में होती है, जो मानवता की ओर अग्रसर करने वाली होती है।

प्रश्न 9: लेखक ने किस प्रसंग में कहा है कि बंदरिया मनुष्य का आदर्श नहीं बन सकती? लेखक का अभिप्राय स्पष्ट करें।

उत्तर: लेखक ने यह टिप्पणी एक संदर्भ में की है जहाँ वह पुराने और नए विचारों की तुलना कर रहे हैं। लेखक ने कहा कि “मेरे बच्चे को गोद में दबाए रखने वाली बंदरिया मनुष्य का आदर्श नहीं बन सकती।” इसका अर्थ यह है कि केवल इसलिए कि कुछ चीजें पुरानी और पारंपरिक हैं, उनका अनुकूलन और अनुसरण करना हमेशा सही नहीं होता।

लेखक का अभिप्राय यह है कि मनुष्य को पुराने और नए विचारों का संतुलित मूल्यांकन करना चाहिए। सभी पुराने विचार और आदतें आदर्श नहीं होतीं, और सभी नए विचार खराब नहीं होते। कुछ पुराने विचार और परंपराएँ उपयोगी हो सकती हैं, लेकिन केवल पुराने पर टिके रहना या आदर्श मानना उचित नहीं है। इसी तरह, नये विचारों का परीक्षण करके जो हितकारी हो, उसे अपनाना चाहिए।

प्रश्न 10: ‘स्वाधीनता’ शब्द की सार्थकता लेखक क्या बताता है?

उत्तर: लेखक के अनुसार, ‘स्वाधीनता’ शब्द का अर्थ है ‘अपने ही अधीन रहना’। इसका मतलब है कि स्वाधीनता केवल बाहरी स्वतंत्रता नहीं है, बल्कि आत्म-नियंत्रण और आत्म-निर्भरता की स्थिति है।

लेखक यह बताता है कि ‘स्वाधीनता’ का अर्थ केवल बाहरी स्वतंत्रता से नहीं, बल्कि आत्म-नियंत्रण और आंतरिक स्वतंत्रता से भी है। यह हमारी परंपराओं और सांस्कृतिक आदर्शों के साथ मेल खाता है, जिसमें व्यक्ति अपने भीतर की स्वतंत्रता और आत्म-संयम को महत्व देता है।

प्रश्न 11: निबंध में लेखक ने किस बूढ़े का जिक्र किया है? लेखक की दृष्टि में बूढ़े के कथनों की सार्थकता क्या है?

उत्तर: लेखक ने एक ऐसे बूढ़े का जिक्र किया है जिसने अपनी जिंदगी के अनुभवों को संक्षेप में व्यक्त किया। बूढ़े के शब्द इस प्रकार हैं:

  • “बाहर नहीं, भीतर की ओर देखो।”
  • “हिंसा को मन से दूर करो।”
  • “मिथ्या को हटाओ।”
  • “क्रोध और द्वेष को दूर करो।”
  • “लोक के लिए कष्ट सहो।”
  • “आराम की बात मत सोचो।”
  • “प्रेम की बात सोचो।”
  • “आत्म-तोषण की बात सोचो।”
  • “काम करने की बात सोचो।”

लेखक की दृष्टि में, इस बूढ़े के कथन पूरी तरह सार्थक हैं क्योंकि वे जीवन के वास्तविक और महत्वपूर्ण पहलुओं की ओर इशारा करते हैं। ये सुझाव व्यक्ति को आंतरिक शांति, प्रेम, और उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने की ओर प्रेरित करते हैं। वे बाहरी दिखावे और भौतिक सुखों से परे जाकर सच्चे आत्म-समर्पण और समर्पण की ओर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता को इंगित करते हैं।

प्रश्न 12: मनुष्य की पूँछ की तरह उसके नाखून भी एक दिन झड़ जाएँगे। प्राणिशास्त्रियों के इस अनुमान से लेखक के मन में कैसी आशा जगती है?

उत्तर: प्राणिशास्त्रियों का अनुमान है कि एक दिन मनुष्य की पूँछ की तरह उसके नाखून भी झड़ जाएँगे। इस अनुमान से लेखक के मन में आशा जगती है कि भविष्य में मनुष्य के नाखूनों का बढ़ना बंद हो जाएगा। इसका मतलब यह है कि मनुष्य अपने पशुवत् लक्षणों को पूरी तरह से त्याग देगा और पूर्णतः मानवता को प्राप्त कर लेगा।

जैसे मनुष्य की पूँछ का अस्तित्व समाप्त हो गया है, वैसे ही नाखून भी एक दिन अप्रचलित हो जाएंगे, जो मानव की पशुवादी प्रवृत्तियों के लुप्त होने का संकेत होगा।

प्रश्न 13: ‘सफलता’ और ‘चरितार्थता’ शब्दों में लेखक अर्थ की भिन्नता किस प्रकार प्रतिपादित करता है?

उत्तर: लेखक ने ‘सफलता’ और ‘चरितार्थता’ शब्दों के बीच भिन्नता को इस प्रकार प्रतिपादित किया है:

  • सफलता: यह बाहरी उपलब्धियों और आडंबरों से जुड़ी होती है। मनुष्य बाहरी उपकरणों और हथियारों के संचयन के माध्यम से कुछ हासिल कर सकता है, जिसे वह सफलता मानता है। यह अक्सर भौतिक और सामाजिक मानकों से संबंधित होती है।
  • चरितार्थता: यह आंतरिक गुणों और मानवीय मूल्यों से संबंधित होती है। चरितार्थता प्रेम, मैत्री, और निःस्वार्थ भाव से दूसरों के मंगल के लिए समर्पित रहने में है। यह आत्म-परिष्कार और उच्च मानवीय आदर्शों को प्राप्त करने का संकेत है।

लेखक के अनुसार, नाखूनों को काट देना एक संकेत है कि व्यक्ति अपने ‘स्व’-निर्धारित आत्म-बंधन को पार कर रहा है और चरितार्थता की ओर अग्रसर हो रहा है। यहाँ ‘चरितार्थता’ का मतलब है कि मनुष्य केवल बाहरी सफलताओं पर ध्यान केंद्रित नहीं कर रहा, बल्कि आंतरिक गुणों और मानवता की ओर बढ़ रहा है।

प्रश्न 14: व्याख्या करें

(क) काट दीजिए, वे चुपचाप दंड स्वीकार कर लेंगे पर निर्लज्ज अपराधी की भाँति फिर छूटते ही सेंध पर हाजिर।

व्याख्या: इस पंक्ति में लेखक नाखूनों की वृद्धि को एक अपराधी की आदतों से तुलना करते हैं। लेखक का कहना है कि जैसे एक अपराधी दंड स्वीकार कर लेने के बाद भी अपनी आदतों से बाज नहीं आता और पुनः अपराध करने लगता है, वैसे ही नाखून लगातार बढ़ते रहते हैं।

जब नाखूनों को काट दिया जाता है, तब भी वे पुनः बेहयाई से बढ़ने लगते हैं। इस प्रकार लेखक ने मनुष्य की पाशविक प्रवृत्तियों की ओर इशारा किया है।

भले ही मनुष्य बार-बार सुधार की बात करता है, लेकिन उसकी पशुवादी प्रवृत्तियाँ, जैसे नाखूनों की वृद्धि, उसे बार-बार अपनी ओर खींचती हैं। लेखक इस प्रवृत्ति को चिंतनीय मानते हैं और यह दिखाते हैं कि मनुष्य के भीतर एक निरंतर संघर्ष चलता रहता है, जिसमें वह अपनी पाशविक प्रवृत्तियों और मनुष्यता के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश करता है।

(ख) मैं मनुष्य के नाखून की ओर देखता हूँ तो कभी-कभी निराश हो जाता हूँ।

व्याख्या: यहाँ लेखक अपने निराशा के कारणों को स्पष्ट करते हैं। मनुष्य के नाखूनों को देखकर उन्हें अपनी बर्बरता और पाशविकता की याद आती है। लेखक मानते हैं कि नाखून, जो कभी मनुष्यों की शारीरिक विशेषता थी, आज भी उसके अंदर की क्रूरता और पशुवादी प्रवृत्तियों की याद दिलाते हैं।

हिरोशिमा पर परमाणु बम गिरने की घटना से उत्पन्न हुई विध्वंसक शक्तियों को देखते हुए लेखक को लगता है कि मानवता अभी भी अपनी पाशविक प्रवृत्तियों से पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाई है। नाखून एक प्रतीक के रूप में उसकी बर्बरता और अमानवीयता का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिससे लेखक निराश होते हैं।

(ग) कमबख्त नाखून बढ़ते हैं तो बढ़ें, मनुष्य उन्हें बढ़ने नहीं देगा।

व्याख्या: इस पंक्ति में लेखक यह बताना चाहते हैं कि भले ही नाखून बढ़ते रहें, मनुष्य अब उन्हें बढ़ने की अनुमति नहीं देगा। इसका आशय यह है कि आधुनिक मानव अब अपने पाशविक स्वभाव और विनाशकारी प्रवृत्तियों को त्याग चुका है। उसने अपनी सभ्यता और संवेदनशीलता को बढ़ाया है और अब वह अपनी क्रूरताओं से मुक्त होने की कोशिश कर रहा है।

हिरोशिमा जैसे विनाशकारी घटनाओं के अनुभव से मनुष्य अब शांति और सृजनात्मकता की ओर अग्रसर हो रहा है। वह अपने विध्वंसक स्वभाव को नियंत्रित करने और मानवीय मूल्यों की रक्षा करने के लिए सतर्क और सचेत है। इसलिए, लेखक मानते हैं कि नाखूनों का बढ़ना कोई चिंता का विषय नहीं है, क्योंकि मानवता अब अपने विनाशक रूप को समाप्त करने की दिशा में आगे बढ़ रही है।

प्रश्न 15. लेखक की दृष्टि में हमारी संस्कृति की बड़ी भारी विशेषता क्या है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: लेखक की दृष्टि में हमारी संस्कृति की बड़ी भारी विशेषता है “स्वाधीनता” का स्वप्न, जो वास्तव में आत्म-बंधन का फल है। भारतीय संस्कृति ने स्वाधीनता को केवल अनधीनता नहीं बल्कि स्वाधीनता के रूप में देखा है, जहां व्यक्ति अपने आप पर आत्म-बंधन करता है।

यह विशेषता भारतीय संस्कृति के दीर्घकालीन संस्कारों से उत्पन्न हुई है। इसलिए, भारतीय संस्कृति में स्व के बंधन को छोड़ा नहीं जा सकता और यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण और स्थायी विशेषता है।

प्रश्न 16. “मैं मनुष्य के नाखून की ओर देखता हूँ तो कभी-कभी निराश हो जाता हूँ।” स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: यह पंक्ति ‘नाखून क्यों बढ़ते हैं’ निबंध से ली गई है। लेखक का कहना है कि नाखूनों की निरंतर वृद्धि, जो बार-बार काटे जाने के बावजूद बढ़ते रहते हैं, सभ्यता और संस्कृति के विकास की गाथा को उद्घाटित करती है। लेखक के अनुसार, नाखून बढ़ने की प्रक्रिया एक पाश्विक वृत्ति का प्रतीक है।

वह इस बात से निराश होते हैं कि भले ही मानवता ने सभ्यता और संस्कृति की दिशा में बहुत कुछ किया है, लेकिन उसकी बर्बरता और पाश्विक प्रवृत्तियाँ अभी भी पूरी तरह समाप्त नहीं हुई हैं। हिरोशिमा जैसे विनाशकारी घटनाएं इसका स्पष्ट उदाहरण हैं। लेखक की निराशा का कारण यह है कि मानवता की पाशविक प्रवृत्तियाँ, जो नाखूनों की तरह बार-बार उभर आती हैं, विकास के बावजूद अभी भी मौजूद हैं।

प्रश्न 17. ‘नाखून क्यों बढ़ते हैं’ का सारांश प्रस्तुत करें।

उत्तर: “नाखून क्यों बढ़ते हैं” निबंध में लेखक ने नाखूनों की वृद्धि को एक प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया है। नाखूनों का बढ़ना उनके पाश्विक स्वरूप का प्रतीक है, जो मनुष्य की प्राचीन बर्बरता और पशुत्व को दर्शाता है। लेखक का कहना है कि नाखून, जो कभी आत्मरक्षा का एक महत्वपूर्ण अंग थे, आज भी बढ़ते रहते हैं, भले ही मनुष्य ने आधुनिक अस्त्र-शस्त्रों का उपयोग शुरू कर दिया हो।

यह दिखाता है कि मनुष्य की पाश्विक प्रवृत्तियाँ पूरी तरह समाप्त नहीं हुई हैं। लेखक ने नाखूनों की निरंतर वृद्धि को सभ्यता और संस्कृति के विकास के संदर्भ में समझाया है और यह व्यक्त किया है कि नाखूनों का बढ़ना एक प्रकार की निरंतर पाशविक प्रवृत्ति का प्रतीक है। नाखूनों को काटना मनुष्य की सभ्यता और संस्कृति के विकास की दिशा में एक प्रयास है, लेकिन यह पाश्विक प्रवृत्ति कभी पूरी तरह समाप्त नहीं होती।

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